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________________ (१८) मल गोत्र लघुश्रेष्ठि-(उ० वी० ७० वर्षे) लघुश्रेष्ठी | बोहरा | खजांची | कुबड़िया वर्धमाना | पटवा | पुनोत लुणा भोभलीया | सिंघी गोधरा नालेरिया लुणेचा | चित्तोड़ा । हाड़ा | गोरेचा आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने अपने जीवन में उपकेशपुर के बाद १४वर्ष तक मरुधरमें घूमकर लाखों अजैनों को जैन बनाये, उनके क्या गोत्र हुए ? उनके लिए तो हम अज्ञात ही हैं। सिर्फ चार गोत्र और उनकी थोड़ी सी शाखाओं का पता मिला है वह यहां दर्ज कर दिया जाता है जो निम्न लिखित है: (१) मूल गोत्र चरड़ चरड़ | कांकरीया | सानी किस्तूरीया बोहरा । पारणिया संघवी वरसांणि अछुपत्ता (२) मूल गोत्र सुघड़ःसुघड़ | संडासिया | तुला मोशालिया दुघड़ । करणा । लेरखा । ये ७ शाखाएं हैं (३) मूल गोत्र लुगलुंग चंडालिया | भाखरिया । बोहरा आदि (४) मूल गोत्र गटियागटिया | टींबाणी | काजलीया | रांणोत आदि .
SR No.032625
Book TitleJain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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