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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/14 या कर्म प्रेरक बुद्धि के द्वारा नहीं, वरन् भावनाओं के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, इसलिए उन बौद्धिक कार्यों में बुद्धि के सामान्य योगदान को स्पष्ट करने के लिए और विशेष रूप से इच्छा और अनिच्छा के उन सम्बंधों को समझने के लिए सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक प्रतीत होता है, जो कि अंशतः बुद्धि से स्वतंत्र होकर उत्पन्न होते हैं और बुद्धि-विरोधी होते हैं। जिसे मनुष्य की वास्तविक इच्छाएं सदैव अनुभूत करना चाहती हैं, वह शुभ या वांछनीय तत्त्व क्या है? और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? इस सम्बंध में नीतिवेत्ताओं में विवाद चला आ रहा है। मानव के लिए वस्तुतः वांछनीय क्या है, इसका तादात्म्य मनुष्य की स्वाभाविक एवं स्थायी इच्छाओं से किया जा सकता है। इस प्रकार नैतिक प्रश्न विभिन्न रूपों में हमें मनोवैज्ञानिक विवेचना की दिशा में ले जाते हैं। वस्तुतः शुभ एवं अशुभ तथा उचित एवं अनुचित के मूल प्रत्ययों को छोड़कर, जो कि प्रत्यक्ष रूप में मनोविज्ञान से सम्बंधित नहीं हैं, शेष सभी महत्वपूर्ण नैतिक प्रत्यय मनोवैज्ञानिक प्रत्यय हैं। मनोविज्ञान - क्या है इसका अध्ययन करता है क्या होना चाहिए का नहीं और इसलिए शुभ एवं अशुभ तथा उचित एवं अनुचित के नैतिक प्रत्यय मनोविज्ञान से प्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित नहीं हैं। नीतिशास्त्र कर्त्तव्य या उचित आचरण का अध्ययन नीतिशास्त्र कर्त्तव्य या उचित आचरण के अध्ययन के रूप में साधारणतया शुभ को उचित का और अशुभ को अनुचित का समानार्थक मानता है। वस्तुतः सामान्य रूप से इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि हम किसी को उचित आचरण कहें या शुभ आचरण कहें अथवा अनुचित प्रेरणा कहें या अशुभ प्रेरणा कहें। यद्यपि चिंतन यह स्पष्ट करेगा कि यदि मानवीय शुभ के सामान्य विचार को, जो कि किसी अन्य साध्य का साधन नहीं होता है, परम शुभ या निरपेक्ष शुभ के रूप में स्वीकार करें, तो वह वैयक्तिक कर्त्तव्य और औचित्य के प्रत्ययों से अधिक व्यापक होता है। उसमें व्यक्ति के हित या सुख भी समाविष्ट होते हैं। निःसंदेह सामान्यतया यह माना जाता है कि व्यक्ति के लिए अपने कर्तव्यों का समापन करना ही उसका परम श्रेय है और यही उसके यथार्थ आनंद एवं हित की अभिवृद्धि करता है, यद्यपि उसका यह अर्थ नहीं है कि कर्त्तव्यों एवं हितों में तादात्म्य है और न इससे यह समझना चाहिए कि उनके अविच्छेद सम्बंध को वैज्ञानिक ढंग से जाना जा सकता है अथवा अभिव्यक्त किया जा सकता है। आधुनिक विचारकों ने कर्त्तव्य एवं
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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