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________________ (27) 'लोक अरवी नामक मन्दिर में पीड़ितों, बुजुर्गों और असहाय लोगों की सेवा करती थी उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर, उनकी भावनाओं का सम्मान करके हुए चोल राजा ने कारागरों को धर्मशालाओं में परिवर्तित कर दिया था। इसके अलावा जैन धर्म की तरह बौद्ध परम्परा में भी जातिगत भेदों की उपेक्षा की गई है। जैन और बौद्ध धर्मावलम्बी सबके प्रति सदभाव रखते थे । वे जनपदों में भ्रमण करके लोकभाषा के माध्यम से लोकजीवन में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना जगाते थे इससे जैन धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म भी तमिल प्रदेश में लोकप्रिय हुआ जिसकी जानकारी अनेक साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों से मिलती है। ई० पूर्व तीसरी शताब्दी में तमिल प्रदेश में आए बौद्ध धर्म का प्रभाव इस प्रदेश में पाँचवीं - छठी शताब्दी में कम होने लगा था। इसका कारण आपसी धार्मिक झगड़े और बौद्ध धर्म में आंतरिक कलह माना जाता है कुछ विद्वानों के मतानुसार बौद्ध धर्म के प्रभाव के कम होने में एक कारण बौद्ध भिक्षुओं का सुविधाभोगी हो जाना भी माना जाता है। भले ही आज तमिलनाडु में बौद्ध धर्म नहीं के बराबर है, लेकिन इस दक्षिणी प्रदेश के लिए बौद्ध धर्म का साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान इतिहास का एक उल्लेखनीय अध्याय है 1 ***** भारतीय हिमालयी बुद्ध धर्म कारभारी वाघमारे, औरंगाबाद भारतीय हिमालयी बुद्ध धर्म हिमालय पर्वत श्रृंखला के आर-पार विस्तृत पर्वततीय क्षेत्र में सम्राट अशोक के शासनकाल में ही प्रचार-प्रसार प्रारम्भ हो चुका था। भू-संरचना के आधार पर समस्त हिमालयी क्षेत्र को मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बांटा गया है, - (1) आठ हजार फूट से उपर स्थित सबसे अधिक ऊंचाई वाला महाहिमालय क्षेत्र, (2) एक हजार फूट से लेकर आठ हजार फूट तक की ऊंचाई वाला क्षेत्र एवं ( 3 ) लघु हिमालय क्षेत्र की जड़ से करीब एक सौ किलोमीटर तक मैदानी भू-भाग की ओर बढ़ा हुआ तराई क्षेत्र । इन
SR No.032621
Book TitleIndian Society for Buddhist Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachya Vidyapeeth
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2019
Total Pages110
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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