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________________ (18) लौकिक जीवन का नेतृत्व राजाओं, ऋषियों, उपाध्यायों, आचार्यो के अनुरूप चलती थी जो शक्ति और धन से अथवा देवताओं की कृपा से अपने और दूसरों के लिये योग और सुविधाएं जुटाने में सत्य चित्त ये तथा उनके प्रयत्न से सामाज्य विस्तृत एवं समृद्ध हो रहे थे। दूसरी ओर समाज के इस प्रवृत्ति पक्ष की सर्वथा अवहेलना करते हुए अनेक श्रवण, ब्रह्म, मुण्डक (अथवा भिक्षु) जटिल आदि जीवन के दुख से तप्त समाज के समक्ष निवृत्ति एवं शांति का आदर्श उपस्थित कर रहे थे जो उस युग के धार्मिक जीवन का संभवत सबसे महत्वपूर्ण तथ्य था। भिक्षु जीवन में विशुद्धि को जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इसी प्राप्ति का उपाय भी बताया गया है अल्पाहार, संसारत्याग, यज्ञ, अग्नि परिचर्या, निष्कर्म, तपश्चर्या ध्यान आदि। तप का अर्थ होता है अपना या प्रदीप्ति होना अर्थात शरीर को तपा कर तेजस्वी बन जाना। आरम्भ में तपका रूप होता था आत्मसंयम, तापमान आत्मोकर्य के लिये शरीर को आत्म संयम एवं आत्मपीड़न के द्वारा शरीर और मन पर दृढ़ता स्थापित करने लगे। इस चर्या के लिये लोग अरण्यवासी बनने लगे तो वह स्थान अरण्यभूमि से तपोभूमि में बदल गयी । तप वह साधन है जिससे व्यक्ति आत्म संयम के द्वारा अपने लक्ष्य के मार्ग को सुगम बनाता है। मुण्डक उपनिषद में तप को ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति का साधन बताया गया है और कहा गया है कि ब्रह्मज्ञानी का शिक्षा प्राप्त कर शिक्षा पर निर्भर रहना चाहिये । तपश्चर्या में योगाभ्यास का प्रमुख स्थान रहा है या योग की अनंत शक्ति पर लोगों का दृढ़ विश्वास भी रहा है। जावाली उपनिषद में कहा गया है कि जिस समय मन में वैराग्य की भावना उत्पन्न हो जाए उसी क्षण प्रवज्या ग्रहण कर लेनी चाहिए। इस समय सांसारिक सुख-भोगों की क्षणभंगुरता के कारण ही मनुष्य के हृदय में वैराग्य उपन्न की भावना जागृति हुई तवा वे अरण्यवासी बनने लगे । बौद्ध जातक कथाओं में इस बात पर बल दिया गया है कि सांसारिक विषय-वासनाएँ मनुष्य को अघोगति के मार्ग में ले चलती है, अतः वैराग्य ही आत्मोत्कर्ष का श्रेष्ठ मार्ग है। वैराग्य के मूल में प्रेम शक्ति आत्म जिज्ञासा ही थी। दीर्घनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्त निकाय, येरगाथा, थेरीगाथा, सुत्त निपात
SR No.032621
Book TitleIndian Society for Buddhist Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachya Vidyapeeth
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2019
Total Pages110
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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