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________________ (10) इसके उल्लेख मिलते है कि कपास, रेशम, क्षौम, ऊन, तथा सन के धागों से अनेक प्रकार के वस्त्र बनाए जाते थे इन वस्त्रों को चीवर कहा जाता था । बौद्ध भिक्षु अपने चिवरों की सिलाई खुद करते थे । इसके लिए उन्हे सुई और कैची रखनी पड़ती थी। जातकों में सुई बनाने के वर्णन मिलते है। चुल्ल्वग्ग में दर्जी द्वारा कपड़ो की सिलाई का काम करने तथा उसकी दुकान का वर्णन किया गया है। महावग्ग में कपड़ा काटने सीने और रफ्फू करने के शब्दों के उल्लेख किए गए है। कौटिल्य ने इस बात का उल्लेख किया कि तत्कालीन समाज में कुशल कारीगर सूत्र वर्म वस्त्र और रज्जू का निर्माण करते थे । अतः इन प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में सिले कपड़े पहनने का प्रचालन अत्यंत प्राचीनकाल से चला आ रहा है। बुद्धकालीन समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार के धागों से वस्त्र बनते थे और कपड़ो कि सिलाई भी होती थी । पालि पिटक में स्त्री-पुरुष, राजा - रानी, धनीमानी नागरिक, साधारण गृहस्थ ब्राह्मण-भ्रमण भिक्षु भिक्षुणीया आदि के वस्त्राभूषणों के वर्णन मिलते है सुत्त-ग्रंथो, पाणिनी तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी इस विषय कि प्रचुर प्रमुख सामाग्री उपलब्ध होती है, परंतु तत्कालीन समाज में प्रचलित पहनावे के वास्तविक नमूनो के लिए परखंभ तथा बदोड़ा से प्राप्तयक्षमूर्तियों, दीदारगंज और बेसनगर कि यक्षिणी मूर्तियों, साँची तथा भरहुत कि वेदिकाओं एवं तोरण में उत्कीर्ण चित्रों तथा मिट्टी कि मूर्तियाँ को देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनके यह तथ्य स्पष्ट होगा कि इस विशाल देश के जन-जीवन में विविधता है वह न्यूनाधिक रूप में यहाँ की वेशभूषा में भी दृष्टिगत होती है। वस्त्र के विषय में उपलब्ध प्रमाणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस युग के समाज में कपास रेशम क्षौम तथा ऊन के विभिन्न आकार प्रकार के रंगबिरंगे परिधान धारण करने का काफी प्रचलन हुआ । अब कपड़ों परकाशीदारी भी होने लगी और लोग सोने-चाँदी के रत्न जड़ित आभूषण भी पहनने लगे। महापरिनिर्वाण सूत्र में वर्णन मिलता है कि जब भगवान बुद्ध वैशाली गए तो रंग बिरंगी पोशाक पहनकर वहाँ के नागरिकों ने उनका स्वागत किया । बौद्ध पिटक तथा जैन एवं ब्राह्मण सूत्र-ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज के स्त्री-पुरुष आभूषण प्रिय थे वे अपने शरीरावयवों को कलात्मक आभूषणों से अलंकृत करते थे दक्ष स्वर्णकार और मणिकार स्वर्ण और रजत के
SR No.032621
Book TitleIndian Society for Buddhist Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachya Vidyapeeth
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2019
Total Pages110
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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