SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में स्वीकार किया, उनके अवर्णवाद बोलने के समान अन्य निर्गणता एक भी नहीं है । सुविनीत शिष्य स्वगुरु की कीर्ति बढाता है। ऐसे सुयोग्य शिष्य की कीर्ति स्वयं ही फैलती है । कम से कम इतना निश्चय करें कि 'जो यह वेष धारण किया है, उसकी कही निन्दा न हो, परन्तु प्रशंसा ही हो, ऐसा ही व्यवहार मैं करुंगा । मेरे निमित्त शासन की निन्दा हो, उसके समान कोई पाप नहीं है । शासन की प्रशंसा हो उसके समान कोई पुन्य नहीं है । यह बात मैं हमेशा याद रखूगा । लोगों में मिथ्यात्व की वृद्धि हो, उसके समान अन्य पाप कौन सा है ? हमारे आगमन से वे भाग जाती हैं जंगल से गुजरते समय किसी व्यक्ति को चार स्त्रियाँ मिलीं । उनके नाम थे - बुद्धि, लज्जा, हिम्मत और स्वस्थता । व्यक्ति ने पूछा - "तुम कहां रहती हो ?" "हम चारों क्रमश: मस्तिष्क, आंख, हृदय और पेट में रहती उत्तर सुनकर वह आगे चला तो उसे चार पुरुष मिले । उनके नाम थे : क्रोध, लोभ, भय एवं रोग । उन्हें पूछा, 'आप कहां रहते हैं ?' ____ "हम चारों क्रमशः मस्तिष्क, आंख, हृदय और पेट में रहते हैं ।" "अरे ! वहां तो वे स्त्रियां रहती हैं ।" "आपकी बात सत्य है, परन्तु हमारा आगमन होते ही वे घर छोड़कर भाग जाती हैं ।" क्रोध से बुद्धि, लोभ से लज्जा, भय से हिम्मत और रोग ए. से स्वस्थता (आरोग्य) नष्ट होती है । (कहे कलापूर्णसूरि - २0mmonsoonmoonmoommon६१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy