SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पादलिप्तसूरिजी के आदेश से जानते हुए भी वह बालमुनि गंगा नदी कौन सी दिशा में बहती है ? वह देखने निकले थे। ऐसे विनीत शिष्य ही गुरु से ज्ञान आदि का खजाना प्राप्त कर सकते हैं । विनीत शिष्य सहनशील होते हैं । गुरु के आशीर्वाद से उसमें सहनशीलता आयेगी ही । लम्बे विहार, कंटीला तप्त मार्ग, बिना ठिकाने का मुकाम, गोचरी-पानी की कठिनाई आदि के समय शिष्य मेरु के समान सहनशील होता है । नारियल द्राक्ष : नारियल भाई ! सुनो । इस विश्व में जितने फल हैं उनमें कुछ न कुछ तो फैंकने योग्य होता ही है, जैसे आम के गुठलीछिलके, केले के छिलके, सेव में उसके कुछ बीज फैंकने पड़ते हैं, परन्तु मैं ही जगत् में ऐसा फल हूं कि जिसका एक भी भाग फैंकना नहीं पड़ता । बालक-वृद्ध सभी आनन्द पूर्वक मेरा आस्वादन कर सकते हैं और हे नारियल ! तेरा तो कोई जीवन है ? ऊपर कैसे बाबों जैसी जट है, भीतर कैसी हड्डी जैसी कठोर कांचली है और भीतर थोड़ा ही काम में आने योग्य पदार्थ होता है । तेरे जैसे का तो विश्व में अस्तित्व ही न हो तो कितना उत्तम हो ? उच्च खानदान वाला नारियल बोला - बहन द्राक्ष ! तुझे क्या पता ? सच्ची बात तनिक समझ तो सही । मैं आसन, वासन (वस्त्र) और प्राशन के काम में आता हूं। मेरी जटा से सुन्दर आसन बनता है, रस्सा बनता है और मेरी खोपड़ी से प्याले आदि बनते हैं और मैं खाने में और पीने में दोनों में काम में आता हूं। मेरे तेल से कितनी ही श्रेष्ठ मिठाइयां बनती है। आदमी के बालों को मेरा तेल सुगन्धित बनाता है । मेरी महत्ता का मूल्यांकन तू कैसे कर सकती है ? आखिर तो तू शराब (मदिरा) की जननी है न? ए.. तुझ में उन्मत्त बकवास के अलावा ओर क्या हो सकता है ? (५२0 oooooooooooooo00 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy