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________________ * अविनय से कर्म-बन्धन होता है । नवकार परम विनयरूप है। अतः वह समस्तपापों का नाशक एवं समस्त वस्तुओं का सार कहलाता है । * नाम तो था विनयरत्न, परन्तु कार्य किये अविनययुक्त । इस विनयरत्न ने रात्रि में राजा का वध कर दिया । उसके पीछे शासन की बदनामी को रोकने के लिए आचार्य प्रवर को भी आत्महत्या करनी पडी। आचार्य के प्राण नष्ट हो जाने का उत्तरदायित्व विनयरत्न का गिना जाता है ।। * ज्ञान, दर्शन आदि की अपेक्षा विनय कितना मूल्यवान है, यह समझने की आवश्यकता है। विनय के बिना ज्ञान आदि कदापि सम्यग् नहीं बन सकते । विनय तो आराधना रूपी घड़ी का प्रमुख अंग (पुर्जा) है जिस के बिना घड़ी चलेगी ही नहीं । आराधना रूपी बगीचे को हराभरा रखने वाला विनय रूपी कुंआ है। * विनय साधना का मूल है, साधना का रहस्य है, साधना का ऐदंपर्य है । साधक को यह महसूस हुए बिना नहीं रहेगा । मैं अपने अनुभव के आधार यह बात अधिकार पूर्वक कह सकता विनय ऐसी चाबी है, जिससे समस्त गुणों के ताले खुल सकते हैं । ये समस्त बातें चाहे मेरे अनुभव से मिलती-जुलती आयें, चाहे संवादी हों, परन्तु मेरी बनाई हुई नहीं हैं। यहां 'चंदाविज्झय पयन्ना' में जो उल्लेख है उसके आधार पर ही मैं बोलता हूं । कोई उल्टा-सीधा हो, भूल हो जाये वह मेरी है । ____ 'ज्ञान पढ़ो' यह नहीं लिखा, 'ज्ञान सीखो' यह लिखा है। ऐसा क्यों ? क्योंकि स्वयं पढ़ तो सकते हैं परन्तु सीख नहीं सकते । गुरु के बिना सीखा नहीं जा सकता । गुरु हो तो विनय करना ही पड़ेगा । * आठों ज्ञानाचार आने के बाद ही सच्चे अर्थ में ज्ञान आ सकता है । (४० 0 0 6 6 6 कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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