SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हा, भैस सिर बहुत हिलाती है, परन्तु समझती कितना है ? सामने की सभा समझदार होनी चाहिये । सभा यदि व्युत्पन्न हो तो तदनुसार, अज्ञानी हो तो तदनुसार सुनाना पड़ता है। वि. संवत् २०२४ के फलोदी चातुर्मास में गांधी चौक में मेरा जाहेर प्रवचन था । मेरी तो इच्छा नहीं थी खुला प्रवचन रखने की, परन्तु "अपोणा अखेराजजी बापजी आइया है, गांधी चौक में जाहेर वख्याण राखणो ज चइजे।" यह सोचकर ओसवालों ने जाहेर व्याख्यान का आयोजन किया था, परन्तु ब्राह्मणों से यह कैसे सहन होता ? एक ब्राह्मण ने व्याख्यान के बीच में खड़े होकर पूछा, 'दूसरा तो सब ठीक है, परन्तु यह तो बताओ कि पाप का बाप कौन है ?" मैंने कुमारपाल चरित्र में इस सम्बन्ध में पढ़ा था, अतः तुरन्त उत्तर दिया, 'पाप का बाप लोभ है ।' उसे 'पाप का बाप मिथ्यात्व' तो नहीं कहा जाता । तदनुरूप उत्तर होना चाहिये । __ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने 'तक्रं पीतम् ?' छास पी ली ? ऐसे प्रश्न का उत्तर कितना सुन्दर दिया था - "तकं श्वेतम्, न तु पीतम्" । छास सफेद होती है, पीली नहीं । परन्तु तबसे मुझे लगा कि समझे बिना कदापि जाहेर व्याख्यान रखने नहीं। बाद में पूज्य पंन्यासजी म.की भी ऐसी ही राय आई थी। * जीव में आलस योंतो भरी हुई ही है, परन्तु विशेष करके जब आत्म-कल्याण करना हो तब सर्व प्रथम आलस चढ़ बैठती है। जीव को आत्म-कल्याण में अत्यन्त आलस आती है। दूसरेदूसरे कार्य करने में कभी भी आलस नहीं, परन्तु आत्म-कल्याणकारी अनुष्ठानों में भरपूर आलस ।। * भीतर बैठा हुआ मिथ्यात्व मोह तो अत्यन्त जोरदार है। वह आपको यहां आने ही नहीं देता । कदाचित् आने की आज्ञा दे तो कान में फूंक मार देगा, कि देखना, वहां जाकर सब सुनना, परन्तु कुछ भी मानना मत । जैसे हो वैसे ही रहें, तनिक भी बदलना मत ।" ५३४0mmonsoomosomoooooom
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy