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________________ सेठ ने पहली पुत्र-वधु को नौकरों की नायक बनाई, दूसरी को रसोई घर का उत्तरदायित्व सौंपा, तीसरी को धन, भंडार की चाबी सौंपी और चौथी को घर का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपा और महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की सत्ता सौंपी । पांच डांगर के दानों के स्थान पर ये पांच महाव्रत हैं । ये प्राप्त कर के किसके समान बनना है ? उज्झिका की तरह फैंकने वाला, भक्षिका की तरह खा जानेवाला, रक्षिका की तरह सुरक्षा करनेवाला या रोहिणी की तरह वृद्धि करनेवाला बनना है ? रोहिणी बनने के लिए पुन्य चाहिये, परन्तु रक्षिका बनने के लिए तो पुरुषार्थ पर्याप्त है । पुन्य कदाचित् हाथ में नहीं है, परन्तु पुरुषार्थ तो हाथ में है । बन सको तो रोहिणी या रक्षिका बनें, परन्तु उज्झिका या भक्षिका कदापि न बनें । उज्झिका एवं भक्षिका बनकर अनन्त बार हम चारित्र हार चुके है । इस भव में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिये । भगवान का पता देश - सत्संग नगर - भक्तिनगर गली - प्रेम की गली चौकीदार - विरह-ताप नामक चौकीदार महल - प्रभु मन्दिर सीढ़ी - सेवा की सोपान पंक्ति यहां तक आने के बाद क्या करना होगा ? दीनता के पात्र में मन रूपी मणि को रखकर प्रभु को चढ़ाना । Ram अहं भाव को एक ओर रखकर प्रभु का शरण स्वीकार करना । (कहे कलापूर्णसूरि - २ 860000000000000 ५२१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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