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________________ प्रभु 'अन्तर्यामी' हैं अर्थात् घट-घट में विद्यमान हैं, विश्वव्यापी हैं । प्रभु अन्तर्यामी हैं अर्थात् सर्वज्ञ है । सब का सब जानने वाले हैं। यह बात यदि निरन्तर नजर के समक्ष रहे तो प्रभु की प्रभुता के प्रति कितना बहुमान उत्पन्न हो ? समुद्घात की बात मैं अनेक बार कह चुका हूं । समुद्घात के चौथे समय में प्रभु सचमुच अन्तर्यामी बनते हैं, विश्वव्यापी बनते हैं । उनकी चेतना सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती हैं । मानो प्रभु अन्त में सब जीवों को मिलने के लिए आते हैं, सन्देश देने के लिए आते हैं - ___ "प्रिय बन्धुओ ! मैं जाता हूं। आपको अन्तिम समय मैं मिलने के लिए आया हूं। आप सभी मैं जहाँ जा रहा हूं वहां आयें ।" भगवान इस प्रकार समग्र ब्रह्माण्ड को पवित्र बनाते हैं । उस समय भगवान द्वारा छोड़े गये पवित्र कर्म पुद्गल इसी ब्रह्माण्ड में फैल जाते हैं । प्रभु के वे पुद्गल हमारे भीतर पवित्रता का संचार कर रहे हैं - यह कल्पना भी कैसी हृदयंगम है ? इस समस्त घटना में भगवान की करुणा देखो । करुणासागर प्रभु से प्रार्थना करो - भगवन् ! आपकी कृपा से ही मैं निगोद से बाहर निकलकर ठेठ यहां तक पहुंचा हूं। अब आपको ही मेरा उद्धार करना है । अब आप उपेक्षा करोगे तो नहीं चलेगा । आप मुंबई से यहां वाहन से आये हैं, पैदल चलकर नहीं आये । उसी प्रकार से यहां तक आप प्रभु की कृपा के बल से आये हैं, आप अपनी शक्ति से नहीं आये; परन्तु आपको अन्य सब दिखाई देता है, केवल भगवान की करुणा नहीं दिखाई देती । पानी में आप भारी लकड़ा खींच लेते हैं, जिसमें पानी भी सहायक होता है न ? यहां भगवान भी सहायक बनते है, क्या यह समझ में आता है ? वाहन के बिना तो फिर भी आप यहां आ सकते हैं, परन्तु प्रभु की कृपा के बिना आप यहां तक (मानव भव तक) नहीं ही आ सकते हैं । भगवान की करुणा आप को नहीं समझ में आती, इसी(४९८ oooooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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