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________________ नरेन्द्र प्रकाशजी - पटना, बैंगलोर, मद्रास, कलकत्ता, मुंबई आदि भारत के शहरों तथा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि स्थानों पर भी हमारी शाखाएं हैं । पूज्यश्री - मैं तो केवल उदाहरण देता हूं । भगवान की भी तीनों लोको में शाखाएं हैं - नाम - स्थापना आदि । आगे बढ़कर कहूं तो घट-घट में प्रभु की शाखाएं हैं, क्योंकि भगवान अन्तर्यामी हैं । इसीलिए कहता हूं कि भगवान चाहे मोक्ष में हो, परन्तु उनकी यहां की पेढ़ी बंद नहीं हुई । नाम, मूर्ति आदि के द्वारा उनका व्यापार जोर-शोर से चालु ही है । मात्र एक स्थान पर ही नहीं, सर्वत्र । मात्र अमुक समय पर नहीं, सदा । सर्वत्र एवं सर्वदा भगवान का जगत् को पवित्र बनाने का कार्य चालु ही है। नरेन्द्र प्रकाशजी (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली के प्रपौत्र) - पूज्य गुरुदेव को वन्दन ! हम दिल्ली से आये हैं। हम हरिद्धार जिनालय में ट्रस्टी हैं । पूज्यश्री का आगामी चातुर्मास फलोदी में होने की सम्भावना है। पूज्यश्री के आशीर्वाद से निर्मित हरिद्वार के जिनालय में सारे भारत के जैन आ रहे हैं । अब बद्रीनाथ (हिमालय) में मन्दिर बन गया है। यहां जो प्रतिमा आई थी, उसका अभी प्रवेश होगा और ११ अगस्त (श्रावण शुक्ला-१२, शुक्रवार) को पू. जंबूविजयजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठा भी होगी। (किसी आपत्ति के कारण प्रभु का प्रवेश नहीं हो पाया।) पूज्यश्री को प्रार्थना है कि आप दिल्ली पधारें, वहां प्रतिष्ठा करानी है । हरिद्वार में चातुर्मास कराने की भी भावना है । आप इस बात पर अवश्य ध्यान देंगे, ऐसी मेरी अभ्यर्थना है। पूज्यश्री - साधु जीवन की मर्यादा के अनुसार हमारा उत्तर होगा - 'वर्तमान जोग ।' (कहे कलापूर्णसूरि - २050wwwwwwwwwwwwwwoom ४७३)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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