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________________ करण को अव्यक्त समाधि कहा है । ध्यान के बिना समाधि कैसे आयेगी ? समाधि के बिना सम्यग् दर्शन कैसे आयेगा ? राग-द्वेष की तीव्र ग्रन्थि भेदे बिना समकित प्राप्त नहीं होगा । "एगो मे सासओ अप्पा ।" ये दो गाथा नैश्चयिक सम्यक्त्व की प्राप्ति पर बल देती हैं । देह के प्रति ममता कम हुए बिना, उससे परे आत्मा है ऐसी बुद्धि के बिना समकित कैसे मिलेगा ? देह को तनिक कुछ होने पर आकुल-व्याकुल होने वाले हम आत्मा की अस्वस्थता की परवाह नहीं करते । इस स्थिति में समकित कैसे मिलेगा ? . समकित अर्थात् सम्यग् दर्शन ! श्रद्धामय दर्शन ! 'सम्यग्' अर्थात् सच्ची रीति से । श्रद्धा से ही जगत् का सच्चा दर्शन हो सकता है । * 'योगदृष्टि-समुच्चय' ग्रन्थ की रचना करके हरिभद्रसूरिजी ने महान् उपकार किया है। वि. संवत् २०२६ में नवसारी चातुर्मास में एक अजैन भाई एक मील की दूरी से नित्य व्याख्यान में आते । 'योगदृष्टि समुच्चय' पर व्याख्यान सुनकर उसे होता कि यहां तो पतंजलि आदि की समस्त बातें आ गई हैं । अजैन लोग भी ग्रहण कर सकें ऐसा यह ग्रन्थ है। * हम बहिर्दृष्टि-बहिर्मुखी हैं । तनिक हृदय को पूछे - पांच मिनट भी क्या हम अन्तर्दृष्टि बन सकते हैं ? "बाहिर दृष्टि देखतां, बाहिर मन धावे; अन्तर दृष्टि देखतां, अक्षय पद पावे..." - उपा. यशोविजयजी म.सा. सर्व प्रथम अन्तर्दृष्टि से प्राप्त होती जागृति घास की अग्नि के समान होती है । तनिक समय में लुप्त हो जाती है। प्रारम्भ में कभी भक्ति करते समय, ज्ञान का अध्ययन करते समय ऐसी झलक मिलती है। आगे-आगे की दृष्टि आने पर जागृति अधिकाधिक टिकती रहती है। इसीलिए वहां होने वाले बोध की क्रमशः लकडी की एवं उपलों की अग्नि के साथ तुलना की है। उसके बाद पांचवी दृष्टि में रत्नों के दीपक तुल्य जागृति आ जाती है । दीपक (कहे कलापूर्णसूरि - २Booooooooooooooooom ४६७)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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