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है - "यह करने जैसा नहीं है", यह आवाज सद्बुद्धि की है जो सद्गुरु के द्वारा प्रदान की गई है। हम उसे न सुनें तो अलग बात है ।
* केवल, अवधि, शास्त्र और चर्म - ये चार चक्षु हैं । सिद्ध केवल-चक्षु हैं । देव अवधि-चक्षु हैं । साधु शास्त्र-चक्षु हैं ।
और शेष सभी चर्म-चक्षु हैं ।
शास्त्र-चक्षु प्रदान करने वाले गुरु हैं । यदि सत्य कहूं तो गुरु के माध्यम से भगवान हैं । ___ 'चक्खुदयाणं' भगवान का विशेषण है ।
* एक तो अपना आयुष्य अल्प, उसमें भी आधी या पौनी जिन्दगी तो लगभग समाप्त हो गई । अब कितनी शेष रही है यह हम जानते नहीं है । ऐसे अल्प एवं क्षणजीवी जीवन में प्रमाद करते रहें यह ज्ञानी कैसे सहन कर सकते हैं ?
बात एक की एक है, परन्तु बारबार मैं इसलिए कहता हूं कि बारबार सुनने पर भी हम भूल जाते हैं, प्रमाद में पड़ जाते हैं।
आपका प्रमाद नष्ट करने के लिए चौबीसों घंटे गुरु भी समर्थ नहीं हैं । कदाचित् समर्थ हों तो भी क्या प्रति पल थोड़े ही टोकते रहेंगे ? यह तो हमें ही भीतर से जागृत होना पड़ता है।
अपनी जागृति ही अपने प्रमाद को, अपने अपराध को रोक सकती है।
गुरु के समक्ष हम अपराध का प्रायश्चित करते अवश्य हैं, परन्तु अधिकतर स्थूल अपराध ही होते हैं । सूक्ष्म विचारों पर तो ध्यान ही नहीं देते । ध्यान देते हैं तो गुरु को कहते नहीं हैं ।
लक्ष्मणा साध्वीजी को एक ही विचार आया था, जिस की आलोचना मायापूर्वक ली तो कितनी चौबीसी तक उनका संसार बढ़ गया ?
सर्व प्रथम तो प्रमाद करना ही नहीं । प्रमाद नहीं हो तो कोई स्खलना या कोई अपराध नहीं होता । कदाचित् स्खलना हो जाये तो गुरु के पास आलोचना ले लें । (कहे कलापूर्णसूरि - २0066666666GB GG BOMBOG ४२३]