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________________ कौन करेगा ? यह परम्परा कैसे चलेगी ? * वि.संवत् २०१५ में मुनि पद्मविजयजी म.सा. को कैन्सर की भयंकर बीमारी थी । उस समय भी उनकी शिकायत थी कि मुझ से कोई आराधना नहीं हो सकती । पू.पं. भद्रंकरविजयजी महाराज ने आउर पच्चक्खाण में से एक गाथा निकाल कर बताई - "आया मे दंसणं आया मे नाणं" मेरी आत्मा ही दर्शन-ज्ञान-चारित्र आदि है । "अब आत्मा पर ध्यान केन्द्रित करें । देह सम्बन्धी विचार त्याग कर आत्मा को लक्ष्य बनायें ।" मैं कोई आराधना कर नहीं सकता । यह निराशाजनक बात भूल कर उत्साह उत्पन्न करें ।" चौबीस घंटो में हमें अपनी आत्मा कितनी बार याद आती है ? क्या पांच मिनिट भी आत्मा याद आती है ? "हूं कर्ता पर भाव नो एम जिम जिम जाणे; तिम तिम अज्ञानी पडे, निज कर्मने घाणे ।" ___पर-भाव का कर्तृत्व दूर करना है । शुद्ध आत्म द्रव्य का चिन्तन करके उसमें प्रतिष्ठित होना है। "शुद्धात्मद्रव्यमेवाहं शुद्ध ज्ञानं गुणो मम ।" यद्यपि ये निश्चयनय की बातें हैं, व्यवहार का क्रियाकाण्ड उस निश्चयनय का ही पोषक है, परन्तु कठिनाई यह है कि हम निश्चय को सर्वथा भूल गये हैं । इसीलिए संथारा पोरसी में नित्य शुद्ध आत्म-द्रव्य को याद करने का ज्ञानीयों का फरमान (आदेश) “एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणं संजओ।" देह कब ढल जाये ? कब यमराज आक्रमण कर ले ? क्या भरोसा है ? अभी ही (जेठ शुक्ला-१३ को) एक सज्जन भारमलभाई हमें मिल कर मांगलिक श्रवण कर के ऊपर गिरिराज पर यात्रा करने के लिए गये । सौ-दो सौ सीढ़ियों चढ़े होंगे कि वे ढल गये । उनके प्राण पखेरू उड़ गये ।। कोई भी तैयारी नहीं हो तो ऐसे समय समाधि कैसे मिलेगी ? बाल्टी कुए में पड़ी हो, परन्तु डोरी हाथ में ही होनी चाहिये । (३६८ 05 GB GOO D BOOBS कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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