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________________ सिद्ध हुए हैं, अतः यह गिरिराज पवित्र है, यह बात नहीं है, परन्तु यह गिरिराज पवित्र है, अतः यहां अनन्त सिद्ध हो चुके हैं । * पांच परमेष्ठियों जैसा उत्तम द्रव्य ।। गिरिराज जैसा उत्तम क्षेत्र । चौथे आरे जैसा उत्तम काल । (हमारे लिए ये ही चौथा आरा है, क्योंकि नाम-मूर्ति के रूप में यहां भगवान मिले हैं ।) अब उत्तम भाव उत्पन्न करें तो काम हो जाये । इतनी विशाल संख्या में साधु-साध्वीजी यहां किस लिए ? इसके लिए एक की शिकायत भी आई है। हमने लिखा - यहां हमें ज्ञान-ध्यान का ऐसा यज्ञ प्रारम्भ करना है, ताकि रत्न उत्पन्न हों और जिन-शासन को उज्ज्वल बनाये, दीर्घ दृष्टि से देखोगे तो यह सब समझ में आयेगा । नूतन पूज्य आचार्यश्री विजय कलाप्रभसूरिजी म.सा. - * जिंदगी का कैसा सुहाना अवसर जानने को और मनाने को मिला है ! आत्मोत्थान करने का कैसा भव्य तीर्थ ? इनकी गोदमें ८-८ महिने रहकर रत्नत्रयी की आराधना चतुर्विध संघ को करनी है। * आप एक-दो महिने में एक-दो दिनों के लिए गिरिराज की मुलाकात ले जायें तो आनन्द नहीं आयेगा । जितने समय रह सको उतने समय लगातार रहोगे तो अधिक आनन्द आयेगा । वांकी में जिन्हों ने सतत रहकर अनुभव किया है, उन्हें उनका अनुभव पूछ लें। जिस प्रकार पूज्यश्री ने कहा - समग्र वागड़ समुदाय का चातुर्मास यहां है। वागड़ खाली है, परन्तु चिन्ता नहीं करे । शक्तिये यहीं से ही मिलेंगी । वागड़ छोड़कर आप मुंबई गये - धन संचय करने के लिए । हम यहां आये हैं आत्म-शक्ति का संचय करने । * जिस समाज के पास गुरु नहीं है, उसकी दयनीय स्थिति हम नजर के समक्ष देख रहे हैं । इस दृष्टि से जैन समाज भाग्यशाली है, क्योंकि इसे गुरु मिले हैं । बीस वर्ष पूर्व आधोई संघ की ओर से चातुर्मास था । इस ? & +
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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