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________________ बारहवे गुणस्थानक पर आप क्षीणमोही बने, मोह का पूर्णतः नाश हो गया फिर तुरन्त ही ज्ञानावरणीय आदि घाती कर्म कह देंगे - 'हम ये चले । हमारा सरदार मर गया है । अब हमारी मृत्यु निश्चित है । ज्ञानावरणीय आदि कर्म हटते ही तेरहवे गुणस्थानक पर केवलज्ञान का प्रकाश अन्तर में प्रवाहित होता है। बारहवे गुणस्थानक पर वीतरागता आ गई । वीतरागता आते ही तेरहवे गुणस्थानक पर सर्वज्ञता प्राप्त होगी ही । साधना वीतरागता के लिए करनी है, सर्वज्ञता के लिए नहीं । सर्वज्ञता तो वीतरागता का पुरस्कार है । जो आत्मा वीतराग बनती है, उसके कण्ठ में सर्वज्ञता पुष्प-माला बन कर पडती है। * जब तक अभिमान नहीं जाता तब तक काम नहीं होता । मोह का सम्पूर्ण भवन अहंकार की नींव पर स्थित है। इसीलिए प्रथम नवकार दी जाती है । नमस्कार सर्व प्रथम अहंकार रूपी वृक्ष के मूल पर ही कुठाराघात करता है। __ ज्यों ज्यों अहंकार नष्ट होता जाता है, त्यों त्यों विनय आती जाती है। विनय आने के साथ अन्य गुण आते जाते हैं, क्योंकि विनय गुणों का प्रवेशद्वार है । अहंकार से अशुद्धि बढ़ती है । विनय से शुद्धि बढ़ती है । गुणवान व्यक्तियों के प्रति ज्यों ज्यों विनय एवं प्रमोद बढ़ते हैं, त्यों त्यों वे गुण हम में आते जाते हैं, क्लिष्ट कर्म जलकर भस्म हो जाते हैं । इसीलिए नमस्कार भाव चौदह पूर्वो का सार गिना गया है। एक नमस्कार भाव आ जाये तो अन्य समस्त गुण स्वयमेव आने प्रारम्भ हो जाते हैं । सेवा, पूजा, गुणानुराग, विनय, वन्दन आदि नमस्कार के ही पर्यायवाची शब्द हैं । योगोद्वहन क्या है ? नमस्कार भाव की शिक्षा है । प्रत्येक उद्देशा से पूर्व आपको खमासमण देने ही हैं, आपको झुकना ही है । खमासमण नमस्कार के प्रतीक हैं । विनयपूर्वक ग्रहण की ३१२ammangaoooooooooooo
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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