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________________ PRIMARIMASSASURBAR वि.सं. २०५२ २७-५-२०००, शनिवार ज्ये. कृष्णा-९ : पालीताणा * बिखरे हुए पुष्प सुरक्षित नहीं रखे जा सकते, बिखर जाते हैं । यदि बिखरे हुए पुष्पों को सुरक्षित रखने हों तो माला बनानी पड़ेगी । पुष्पों की माला को आप सुखपूर्वक कण्ठ में धारण कर सकते हैं । भगवान के बिखरे हुए, गिरे हुए वचन-पुष्पों की गणधर भगवंतों ने माला बनाई है, जिन्हे आज हम आगम कहते हैं । आगम अर्थात् तीर्थंकरो द्वारा बिखेरे हुए वचन-पुष्पों से गणधरों द्वारा बनाई गई माला । * तीर्थ तीन हैं - १. द्वादशांगी २. चतुर्विध संघ ३. प्रथम गणधर इन तीर्थों की आराधना करने वाले अवश्य मोक्षगामी बनते हैं । उत्कृष्ट आराधना उसी भव में मोक्ष प्रदान करती है । * आप कठिनाई से गोचरी लाओ और मंगवाने वाले उसका उपयोग नहीं करें तो आपको कितना कष्ट होगा? गणधरों ने अथाक परिश्रम से आगमों की रचना की, पूर्वाचार्यों ने उन्हें (कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 ३०९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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