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________________ अरिहंत ही नहीं होते तो मोक्ष-मार्ग कौन बताता ? मोक्षमार्ग ही नहीं होते तो सिद्ध कौन बनेंगे? इसीलिए अरिहंत मध्य में प्रतिष्ठित हैं । * धोबी का कार्य एक ही है, कपड़े स्वच्छ करने का । तीर्थंकरो का कार्य एक ही है, जगत् को स्वच्छ करने का, अपवित्र जीवों को पवित्र करने का । नाम, आकार, द्वव्य एवं भाव से भगवान सर्वत्र सदा जगत् में पवित्रता का संचार करते रहते हैं । श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने कहा है - "नामाऽऽकृतिद्रव्यभावैः पुनतस्त्रिजगज्जनम् ।" * लोगस्स (दूसरा नाम - नामस्तव) से नाम अरिहंत । 'अरिहंत चेइआणं' से स्थापना अरिहंत । 'जे अ अइआ सिद्धा' से द्रव्य अरिहंत । 'सव्वन्नूणं सव्वदरिसिणं' से भाव अरिहंत की स्तुति हुई है। मन को प्रिय लगने वाली वस्तु सुनते ही हृदय नृत्य करने लगता है न ? उस प्रकार प्रभु का नाम सुनते ही क्या हृदय नाचता है ? यदि नहीं नाचता हो तो समझें कि अभी तक प्रभु प्रिय लगे नहीं हैं । जिसको प्रभु प्रिय लगते है, उसे प्रभु का नाम, मूर्ति आदि भी प्रिय लगेंगे ही। भगवान की ऐसी करुणा है कि "मेरा साधु संसार छोड़कर संयम-जीवन व्यतीत करे और कुछ प्राप्त न करें, यह कैसे चले ?" इसीलिए उन्होंने शास्त्रों की रचना की है। यहां से लगा कर मोक्ष तक जितने भी गुणों की आवश्यकता हो, वे सभी इस शासन में से मिल सकेंगे, ऐसी शास्त्रकार गेरण्टी' देते हैं । भगवान जगत् के नाथ हैं तो हमारे नाथ क्यों न हों ? नाथ उन्हें ही कहा जाता है जो अप्राप्त भूमिका हमें प्राप्त करायें और प्राप्त भूमिका को अधिक स्थिर बना दें । इन भगवान के साथ माता-पिता, बन्धु आदि की अपेक्षी भी प्रगाढ सम्बन्ध हो जाना चाहिये । [२८४ 000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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