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________________ पालन नहीं किया । अब सोचो - यह कामना कैसे हुई ? अज्ञान के कारण हुई । आत्मा के अज्ञान में से ही कामनाऐं उत्पन्न होती हैं । अज्ञान कैसे उत्पन्न होता है ? अज्ञान अविवेक से उत्पन्न होता है । विवेक से अज्ञान नष्ट होता है । ज्ञान से कामनाऐं मिटती हैं । कामनाएं नष्ट होने पर क्रोध भी चला जाता है । मेरा नाम अन्य किसी ने रखा है। इस नश्वर नाम के लिए कोई चाहे जैसे बोले, उसमें मुझे इतना क्रोध क्यों करना चाहिये ? दिखाई देता है वह शरीर है । आत्मा दिखाई नहीं देती । यह ज्ञान हमें विवेक प्रदान करता है। 'मैं' - 'मेरा' यह मोह का मंत्र है। उसे हमें "मैं शरीर नहीं हूं, ये बाहर का मेरा कुछ भी नहीं है ।" इस प्रतिमंत्र से जीतना है । यह विवेक भगवान, गुरु एवं शास्त्रों से प्राप्त होता है । साधु में क्षमा आदि होती हैं, अविवेक कहां से होगा ? हो तो अठारह हजार शीलांग में से अंगो का भंग होता है । * क्रोध का आवेश आये तब क्या करें ? १. आवेश आता है यह प्रतीत होते ही वह स्थान छोड़ वह बात और उस व्यक्ति को भूल जायें, भूलने का प्रयत्न करें । नहीं भूल सको तो मन को किसी अन्य में लगाये । उनके दृष्टिकोण को उनकी दृष्टि से भुलाने का प्रयत्न करें । ३. बात को अन्य मोड़ दें । ४. भीतर खलबली मचे तब आंखे बंद करके भीतर झांकने का प्रयत्न करें । (कहे कलापूर्णसूरि - २000000000000000000 २७९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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