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________________ * मुनिराज घर पर गोचरी (भिक्षा) लेने गये तब पिंजरे में बंद पोपट ने पूछा, "मैं इस बन्धन में से कैसे छूट सकता हूं ?" गुरु को पूछने पर वे मूच्छित हो गये । पोपट को यह कहने पर वह समझ गया । (मुनि कुछ समझे नहीं थे, फिर भी पोपट समझ गया ।) मूच्छित (मृतप्राय) बन कर उसे मृत समझकर पिंजरा खोल दिया गया और पोपट उड़ गया । पोपट की इच्छा जगी । क्या इस शरीर के पिंजरे में से छूटने की हमें इच्छा जगी है ? पोपट समझ गया, क्या हम समझे ? भगवान की मूर्ति से क्या हम ऐसा कुछ समझ सकेंगे ? वाणी से भले ही भगवान नहीं बोलते, परन्तु मुद्रा से तो बोलते ही हैं । कितनेक उत्तर मौन रहकर ही दिये जाते हैं । हर जगह पर शब्द उपयोगी नहीं होते । अक्षरों से ज्ञान होता है, उस प्रकार बिना अक्षरों के (संकेतों आदि से) भी ज्ञान होता है । 'ध्यान-विचार' में अनक्षर ज्ञान का भी एक वलय है । भगवान की मुद्रा बोध देती है - "आप मेरे पास आनन्द मांगते हैं, परन्तु मुझे यह आनन्द साधना से मिला है। आप भी साधना करके आनन्द प्राप्त कर सकते हैं ।" * व्यक्तिगत राग कहलाता है। राग दोष है । समष्टिगत प्रेम कहलाता है । प्रेम गुण है। खड्डे में भरा पानी गन्दा होता है। व्यक्तिगत राग मलिन होता है । विशाल समुद्र निर्मल होता है । प्रेम निर्मल होता है । * अभी मैं मुंबई-दहीसर गया था। तब अपार जन समुदाय उमड़ पड़ा था । उस समय मैंने इतना ही कहा था कि 'आप मेरे दर्शनार्थं नहीं आये, परन्तु मुझे दर्शन देने के लिए आये हैं।' उनके हृदय में गुरु के प्रति बहुमान है । उसे नमस्कार करने * एक भी व्यक्ति मां के बिना, मां के प्रेम के बिना महान् नहीं बना होगा । भगवान भी जगदम्बा है। भगवान में परम प्रेम रूप माता के दर्शन होने चाहिये । भगवान, गुरु, धर्म, प्रवचन कहे कलापूर्णसूरि - २as s oon ass oon as
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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