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________________ शासन की मर्यादा देखो । केवली बने हुए शिष्य भी छद्मस्थ गुरु को नहीं कहते कि मुझे आप से अधिक ज्ञान है । गुरु महाराज कितने उपकारी कि "स्वयं के पास केवलज्ञान नहीं है और मुझे दिया है" ऐसा दृष्टिकोण ऐसा भाव आने ही नहीं देता कि 'आप से मैं बड़ा हूं ।' यद्यपि यह तो अपनी दृष्टि से चिन्तन है, अन्यथा केवलज्ञानी को चिन्तन कैसा ? * देव- गुरु के गुणों के प्रति प्रेम-आदर अधिक होगा, उतना आत्म- गुणों का प्रकाश अधिक होगा । विकल्प करके स्वयं ध्यान कर सकते हैं, परन्तु निर्विकल्प दशा तो देव-गुरु की कृपा से ही आती है । * मार्ग मिला है, मार्ग-दर्शक मिले हैं तो प्रमाद किस लिए ? H पंच परमेष्ठी से पंचाचार की शुद्धि अरिहंत के ध्यान से ज्ञानाचार की शुद्धि होती है । सिद्ध के ध्यान से दर्शनाचार की शुद्धि होती है । आचार्य की आराधना से चारित्राचार की शुद्धि होती है । उपाध्याय के ध्यान से तपाचार की शुद्धि होती है । (सज्झायसमो तवो नत्थि ) साधु की आराधना से वीर्याचार की शुद्धि होती है । (वीर्याचार की तरह साधु सर्वत्र व्याप्त है) कहे कलापूर्णसूरि २ OOOOOOOOO २३९
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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