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________________ उस लड़के ने जाते-जाते कहा, 'बाबाजी ! अब आपका नाम शीतलदास नहीं, क्रोधदास है।' अच्छा है, अपनी कोई परीक्षा नहीं लेता । यदि कोई हमारी परीक्षा ले तो क्या हम उत्तीर्ण हो जायेंगे ? __ आत्मा का लक्षण उपयोग रखा है, समता नहीं । क्यों ? समता सदा नहीं होती । उसे साधना के द्वारा उत्पन्न करानी पड़ती है । यह सामायिक समता जगाने के लिए हैं । * धन्य शासन ! धन्य साधना ! यदि हृदय में से ऐसा अहोभाव प्रकट हो तो भी अपना काम हो जाये । इस शासन की अपकीर्त्ति हो, ऐसा हमसे कैसे हो सकता अहमदाबाद की दशा जानते हैं न ? साध्वीजियों को कोई अपनी सोसायटी में रखने के लिए तैयार नहीं है । फरियाद है कि ये गन्दगी बहुत करती हैं । एक तो स्थान दें और ऊपर से गन्दगी सहन करें ? लोगों के मन में यह विचार स्वाभाविक रूप से आ जाता है । आप यदि इस धर्मशाला को गन्दी करें तो दूसरी बार यहां आपको क्या उतरने को मिलेगा ? संघों में हमें अनेक बार अनुभव हुआ है । एक बार संघ को उतरने के लिए स्कूल देने के बाद दूसरी बार देते नहीं है, कारण यही है । हम एक कदम से दो कदम आगे जाने के लिए तैयार नहीं है। जब हम सामान्य मानवीय सभ्यता भी नहीं सीखे तो लोकोत्तर जैन शासन की आराधना कैसे कर सकेंगे? हमारे निमित्त से जैनशासन की बदनामी हो, किसी को साधु-साध्वी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो, इसके समान अन्य कोई पाप नहीं है । * हृदय में समता के द्वारा जितना मैत्री-भाव विकसित हुआ हो उतनी मधुरता का अन्तर में अनुभव होता हैं । क्या नीम में मधुरता है ? यदि कोई नीम की चटनी बनाये तो क्या आप उसका उपयोग करेंगे ? कषाय इतने कडवे होते हैं, फिर भी हम कषाय करते ही रहते हैं, यह कितना आश्चर्य है ? कहे कलापूर्णसूरि - २ eaonwww.moonam २११)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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