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________________ । स्वाध्याय मग्नता २५-४-२०००, मंगलवार वै. कृष्णा-६ : पालीताणा * जब तक तीर्थ का अस्तित्व रहता है तब तक जीवों को प्रभु का मार्ग मिलता रहे, अतः गणधरों ने प्रभु के वचनों को सूत्रों के रूप में गुम्फित किया । हमारी न्यूनता दृष्टिगोचर हो उसके लिए ये आगम हैं । आगम दर्पण हैं । उस दर्पण में हमें अपनी आत्मा देखनी है और उसकी मलिनता नष्ट करनी है । देह आत्मा का घर है । हम तो ज्ञानादिमय हैं । दर्पण में शरीर दिखाई देता है, परन्तु आगमों में ज्ञानादिमय आत्मा दिखाई देती है यदि देखने की योग्यता हो तो । हमें अपना मूल स्वरूप याद आये अलः ये आगम हैं। आत्मा दिखाई नहीं देती परन्तु ज्ञान आदि गण तो दिखाई देते हैं न ? आप यदि गुणों को निर्मल एवं पुष्ट बनाने का प्रयत्न करेंगे तो आत्मा निर्मल एवं पुष्ट बनेगी ही । गुण गुणवान के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं रहते । ज्ञान आदि की आराधना करने के लिए ही यह साधु-जीवन का समस्त समय हैं । साधु-जीवन अनुकूलता भोगने के लिए नहीं कहे कलापूर्णसूरि - २wwwwwwwwwwwwwwwwww १८७)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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