SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिन्तन में मग्नता वाचना चंदाविज्झय पयन्ना - २१-४-२०००, शुक्रवार वै. कृष्णा-३ : पालीताणा परमत्थंमि सुदिट्ठे, अविणट्ठेसु तव संजयगुणेसु । लब्भइ गई विसिट्ठा, सरीर सारे विनट्ठे वि ॥ ८५ ॥ इस शासन को प्राप्त करके अनेक आत्मा उसी भव * में मोक्ष में पहुंच गये, कितने ही मोक्ष की यात्रा पर निकल पड़े और मार्ग में देव - मनुष्य आदि गतियों में विश्राम लेने के लिए बैठे | मुक्ति-मार्ग पर चलने वालें जीवों की यह विशिष्टता होती है । पूर्व में साधना की हुई हो तथा न की हुई हो, दोनों के संस्कारों में अन्तर तो पड़ने वाला ही है । कोई द्रुतगति से मोक्ष - मार्ग पर चलता है, कोई मंद गति से चलता है । आम के वृक्ष पर आम खाने के लिए पोपट भी जाता है, चींटी भी जाती है । दोनों के पास अपनी-अपनी गति है । मोक्ष - मार्ग पर कोई चींटी की गति से चलता है, कोई पक्षी की गति से चलता है; परन्तु दोनों का प्रणिधान (संकल्प) दृढ होना चाहिये । यदि प्रणिधान कच्चा हो तो कदापि ध्येय तक पहुंचा कहे कलापूर्णसूरि २ Wwwwwww NOON १६१
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy