SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवाज में सौम्यता - ये समस्त योगी के प्राथमिक लक्षण हैं । ये आठों लक्षण पूज्यश्री में हमें प्रतीत होंगे । योग की सिद्धि हो गई या नहीं ? उसके चिह्न क्या ? स्वयं को तथा दूसरों को योग-सिद्धि का पता कैसे चलेगा? हमारे इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में स्कन्दपुराण कहता है कि - - अनुरागं जनो याति, परोक्षे गुणकीर्तनम् । न बिभ्यति च सत्त्वानि, सिद्धेर्लक्षणमुच्यते ॥ जिसे देख कर लोग अनुरागी बन जायें, अनुपस्थिति में भी जिसका गुण-गान होता रहे, जिससे प्राणी भयभीत न हों । ये योग की सिद्धि के लक्षण हैं । योगशास्त्र के बारहवे प्रकाश में कलिकाल-सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी कहते हैं - अङ्गमदुत्व - निदानं स्वेदन - मर्दन - विवर्जनेनाऽपि । स्निग्धीकरणमतैलं प्रकाशमानं हि तत्त्वमिदम् ॥ अमनस्कतया संजायमानया नाशिते मनःशल्ये । शिथिलीभवति शरीरं छत्रमिव स्तब्धतां त्यक्त्वा ॥ - योगशास्त्र, १२-३७/३८ "मालिश के बिना भी शरीर की सुकोमलता, तेल के बिना भी चमड़ी की स्निग्धता - ये भीतर चमकते तत्त्वों के बाह्य चिह्न मन का शल्य दूर हो, मन सम्पूर्णतया विलीन हो जाये, तब शरीर अक्कड़ता छोड़ कर छत्र तुल्य शिथिल हो जाता है ।" पूज्यश्री को प्रत्यक्ष देखनवालों तथा चरण-स्पर्श करनेवालों को ध्यान होगा कि उपर्युक्तानुसार ही पूज्यश्री की त्वचा है, सुकोमल काया है, अक्कड़तारहित अंग हैं । ऐसे सिद्धयोगी के वचनामृतों का श्रवण करना यह जीवन का परम आनन्द है । यह आनन्द अन्य व्यक्ति भी प्राप्त करें, इस आशय से यह ग्रन्थ प्रकाशित किया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ में मुख्यतः वांकी के चातुर्मास के पश्चात् जहांजहां वाचना दी गई और हमने जहां जहां उपस्थित रहकर अवतरण किया, उसका प्रकाशन किया गया है ।
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy