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________________ लाकडिया - पालिताणा संघ, वि.सं. २०५६ २-४-२०००, रविवार चैत्र कृष्णा-१३ : बरवाला "चंदाविज्झय पयन्ना' - गाथा ७२ * पाप-अकरण-नियम का विचार भगवान की कृपा के बिना नहीं आ सकता - यह हरिभद्रसूरिजी का कथन है । जब जब पाप नहीं करने का आपका मन हो जाये या आप वैसा संकल्प करो तब मानें कि भगवान की कृपा की मुझ पर वृष्टि हो रही है। सर्व प्रथम भगवान की कृपा आगे रखनी चाहिये । इससे भगवान की कृपा-शक्ति का हमें ध्यान आता है । * केवल बीस स्थानक तप करने से तीर्थंकर नामकर्म का बंध नहीं होता, परन्तु भगवान के साथ समापत्ति होने से और जगत् के समस्त जीवों के साथ एकता हो जाने से ही तीर्थंकर नामकर्म बंधता है । चारसौ उपवास तो अभव्य भी कर सकते हैं, परन्तु इस प्रकार तीर्थंकर पद सस्ता नहीं है । ___ यदि भगवान के प्रति प्रेम हो तो भगवान के नाम एवं प्रतिमा के प्रति प्रेम होना चाहिये । हमें भगवान के नाम के प्रति अधिक प्रेम है या हमारे नाम के प्रति अधिक प्रेम है ? हमें भगवान की मूर्ति पर अधिक प्रेम (कहे कलापूर्णसूरि - २66 6 6 6 6 GS 5 GS GS 5 GS 6 GB ८५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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