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________________ माहात्म्यम् ३५३ शालप्रामशिलायां वा देवागारे शिवान्ये । तीर्थे नद्यां पठेद्गीता सौभाग्यं लभते ध्रुवम् ॥ २१ ॥ देवकीनन्दनः कृष्णो गीतापाठेन तुष्यति । यथा न वेदनेन यज्ञतीर्थव्रतादिभिः ॥२२॥ गीताधीता च येनापि भक्तिभावेन चेतसा । वेदशास्त्रपुराणादि तेनाधीतानि सर्वशः ॥ २३ ॥ योगस्थाने सिद्धपीठे शिलाप्रे सत्सभासु च। यझे च विष्णुभक्ताप्रे पठन् सिद्धिं पर लभेत् ॥ २४।। गीतापाठं च श्रवणं यः करोति दिने दिने। क्रतवो वाजिमेधाद्याः कृतास्तेन सदक्षिणाः ॥ २५ ।। शालग्रामशिलाके पास, देवागार, शिवालय तीर्थस्थान किम्बा नदी तीर पर गीता पाठ करनेसे निश्चय सौभाग्य लाभ होता है ।। २१ ॥ देवकीनन्दन श्रीकृष्ण गीता पाठ करनेसे जिस प्रकार तुष्ट होते हैं, वेद पाठ, दान और यज्ञ तीर्थ व्रतादि करनेसे वैसे तुष्ट नहीं होते ॥२२॥ जिन्होंने चित्तको भक्तिभावापन्न करके गीता अध्ययन किया है, उनकी वेद, शास्त्र, पुराणादि समुदय अध्ययनकी क्रिया हो चुकी ॥ २३ ॥ योगस्थानमें, सिद्धपीठमें, शिलाके सामने, सत् सभामें, यज्ञस्थल में और विष्णुभक्तके सम्मुख गीता पाठ करनेसे परासिद्धि लाभ होती है ॥ २४ ॥ जो प्रतिदिन गीता पाठ तथा श्रवण करते हैं, उनकी सदक्षिणा अश्वमेधादि यज्ञ अनुष्ठानकी क्रिया होती है ॥२५॥ -२३
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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