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________________ का सव 'अष्टपदश अध्याय तमोगुणका ज्ञान, कर्म और फर्त्ता ये तीन जिस आकारसे अंकित हुए हैं, उन्हें मैं एक एक करके तुमसे कहता हूँ, सुनलो ॥ १६ ॥ सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते । अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥२०॥ __ अन्वयः। येन ( ज्ञानेन ) विभक्त षु ( परस्परं व्यावृत्तषु ) सर्वभूतेषु ( ब्रह्मादिस्थावरान्तेषु ) अविभक्त ( अनुस्यूतं ) एकं अव्ययं ( निर्विकारं भावं ) परमात्मतत्त्वं ईक्षते, तत् ज्ञानं सात्त्विकं विद्धि ॥ २० ॥ अनुवाद ।, जिसके द्वारा विभक्त सर्वभूतों में एक अव्यय अविभक्त भाव परिदृष्ट होता है उसी ज्ञानको सात्त्विक जानना ॥ २० ॥ व्याख्या। यह जो मायासे आदि लेकरके स्थावरान्त पर्यन्त आकाश, वायु, अग्नि, जल, मृत्तिका, स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज प्रजाको पृथक् पृथक् भाक्से देखते हो, यह सबही विनाशी हैं । जो विनाशी है वही अनित्य है। इन सबके परिणाममें जो है, वही नित्य और अव्यय है। सुतरां यह जो पृथक् भाव है, यह केवल नाम और रूपके लिये पृथक्ता दिखाई पड़ता है, असलमें एक बिना दो नहीं है। जब इस ज्ञानका उदय होगा, तबही उसे सात्त्विक कह करके जानना ॥ २० ॥ पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान् पृथग्विधान् । वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ॥२१॥ अन्वयः। तु ( किन्तु ) यज्ज्ञानं सर्वेषु भूतेषु पृथविधान् नानाभाषान् पृथक्त्वेन वेत्ति, तज्ज्ञानं राजसं विद्धि ॥ २१ ॥ अनुवाद। परन्तु जिस ज्ञानसे सर्वभूतोंमें पृथविध नाना भाव समूहको पृथक रूपसे जाना जाता है, उस ज्ञानको राजस जानना ॥ २१॥ व्याख्या। जिस ज्ञानसे दृश्यमान पदार्थों के प्रत्येकको पृथक रूपसे समझ लेता है, उस ज्ञानको राजस ज्ञान जानना ॥२१॥
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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