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________________ श्रीमद्भगवद्गीता करके अल्पबुद्धियोंके लिये साकार-उपासनामय पुराणादि सृष्टि करके मुक्तिमार्गको सुलभ कर दिये हैं, वही व्यास (अवस्था ) है। . .. और "स्वयं" ? वही क्रियाकी परावस्था है । जिस अवस्थामें पड़के भोग-पश्चात् उतर पाके मैं "मैं" को "तुम" रूपसे समझ करके जान सकता हूँ कि, यह अपनी अनुभवनीय अवस्था समूह जिन्हें मैं भोग किया हूँ, पुनः नीचे उतर आकर मैं अपने मनही मनमें जानता हूँ कि, जब मेरी ऋषि-अवस्था, नारद-अवस्था, असित-अवस्था, देवलअवस्था, व्यास-अवस्था और स्वयं-अवस्था हुई थी, तब वह ऊपर वाला मैं ही जो परमब्रह्म, परमधाम, पवित्र, परमपुरुष, शाश्वत, दिव्य, आदिदेव, अज और विभु हूँ, उसे मैं देखा हूँ, अनुभव किया हूँ और समझा हूँ। यह जैसे तुमही मुझको कहते हो ॥ १२ ॥ १३॥ सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव। ... न हि ते भगवन् व्यक्ति विदुईवा न दानवाः ॥ १४ ॥ अन्वयः। हे केशव ! यत् मां वदसि, एतत् सर्व ऋतं ( सत्यं ) मन्ये; हि ( यस्मात् ) हे भगवन् ! ते ( तब ) व्यक्ति ( प्रभवं ) देवाः न विदुः, दानवाः ( च ) न (विदुः ) ॥ १४ ॥ अनुवाद। हे केशव ! तुम मुझको जो कहते हैं, वह समस्त ही सत्य कह करके मैं मानता हूँ; क्योंकि, हे भगवन् ! देवता भी तुम्हारा प्रभब (आविर्भाव कारण ) नहीं जानते, दानव भी नहीं जानते ॥ १४ ॥ व्याख्या। "केशव"-"क" = ब्रह्मा, सृष्टिकर्ता + "ईश" == संह + "व" =शून्य; यह सृष्टिकरण शक्ति और संहरण शक्ति जब शून्य होकर मिल जाकर एक होता है अर्थात् सृष्टि-संहार शून्य निस्तरंग स्थिति-अवस्था आती है, उसी अवस्थाको "केशव" कहते हैं। इस अवस्थाको जब मैं भोग करके उतर आया, तब ऊपरमें जो जो कहे हैं वह सब मुझको मना दिये। वह जो केशव अवस्था है,
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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