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________________ चतुर्दश अध्याय १८७ अनुवाद। सत्त्वगुणसे ज्ञान उत्पन्न होता है। रजोगुणसे केवल लोभोत्पन्न होता है और तमोगुणसे प्रमाद, मोह तथा अज्ञान उत्पन्न होता है ॥ १७ ॥ व्याख्या। सत्त्वगुणका प्रकाश होनेसे “मैं” को समझा देता है। यह “मैं क्या है, उसे जाननेका नाम ही ज्ञान प्राप्ति है। रजोगुणमें पराए द्रव्यको किसी प्रकारसे अपना कर लेनेकी लालसा बढ़ती है। तामसिक अवस्था ही प्रमाद, मोह और अज्ञानताकी लीलाभूमि है ॥१७॥ उध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः। जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥ १८ ॥ . अन्वयः। सत्त्वस्थाः ( सत्त्ववृत्ति प्रधानाः ) ऊध्वं गच्छन्ति ( उत्तरोत्तरं ऊर्व सत्यलोकपर्यन्तान् लोकान् प्राप्नुवन्ति ) राजसाः मध्ये तिष्ठन्ति, जघन्यगुणवृत्तिस्थाः ( तमोगुणस्य वृत्तौ प्रमादमोहादौ स्थिता:) तामसाः अधः गच्छन्ति ॥ १८॥ अनुवाद। सत्त्ववृत्ति प्रधान सात्त्विकगण ऊर्ध्व दिशामें गमन करते हैं, रजः प्रधान मनुष्यगण मध्यभागमें रहते है और प्रमाद मोहादि तमोगुण की वृत्तिमें रहनेवाले तामसी जन अधोदिशामें जाते हैं ॥ १८ ॥ व्याख्या। सत्त्वगुणकी सेवा करने वाले साधकगण ऊर्ध्वगति (स्वर्गके निम्नस्तरसे आदि लेके विष्णु देवतके गोलकादि स्थानभोग, ऐसे कि परब्रह्ममें लय पर्यन्त ) प्राप्त होते हैं। इसका लीलाक्षेत्र आज्ञा चक्रसे प्रारम्भ होकर ऊंची दिशामें है। रजोगुणमें रहनेसे वासनाके वशमें रह करके काम काज करना पड़ता है। इसलिये रजोगुण साधनेवाले मनुष्यगण न ऊंचे न नीचे मध्य भागके लोकमें ( कर्मभूमि मनुष्य-लोकमें ) रह करके जन्ममृत्युके अधीन हो करके आवागमन करते रहते हैं। इसका लीलाक्षेत्र अनाहत चक्र है। - जघन कहते हैं कटिदेशको सम्मुख दिशाके निम्न स्थानको। तमोगुणकी लीलाक्षेत्र कामपुरचक्र होनेसे इसको जघन्य कहते हैं ।
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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