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________________ १८५ चतुर्दश अध्याय मले की ओर दृष्टि न दे करके केवल बुरे काम काजका प्रवाह चलानेका नाम प्रमाद है। __नशा पीकर भूत बनके रहनेका नाम मोह है। हे कुरुवंशका हर्ष बढ़ानेवाले ! इस इस प्रकार अवस्थायोंका उदय जब अन्तःकरणमें प्रकाश होगा, तबही जानना कि तुमको तमो-विकारने घेर लिया है॥ १३ ॥ यदा सस्वे प्रवृद्ध तु प्रलवं याति देहभृत् । तदोत्तमविदां लोकानमलान् प्रतिपद्यते ॥ १४ ॥ अन्वयः। सत्त्वे प्रवृद्ध सति यदा तु देहभृत् ( जीवः ) प्रलयं ( मृत्यु) याति (प्राप्नोति ), तदा उत्तमविदां (महादादितत्त्वविदो ) अमलान् (प्रकाशमयान्) लोकान् प्रतिपद्यते ( प्राप्नोति.)॥ १४ ॥ अनुवाद। सत्त्वगुण की वृद्धिके समय जब ही जीव मर जावेंगे, तब ही वह उत्तमवेत्तागणोंके प्रकाशमय लोकों को पावेंगे ।। १४ ॥ व्याख्या। पहिले कहे हुए सत्त्वगुणके भोगके समयमें कोई शरीरधारी शरीर त्याग करेंगे तो महदादि तत्वविद्गणोंके जो सब प्रकाशमय लोक ( सुख उपभोगके स्थान ) हैं, उन्हीं सब लोकमें वे साधक गमन करेंगे। (८म अः ६ष्ठ श्लोक देखो ) ॥ १४ ॥ रजसि प्रलयं गत्वा कमसंगिषु जायते । तथा प्रलीनस्तमसि मूढ़योनिषु जायते ।। १५ ॥ अन्वयः। रजसि (विवृद्ध सति ) प्रलयं गत्वा फर्मसंगिषु (कर्मासक्त षु मनुष्येषु ) जायते; तथा तमसि (विवृद्ध सति ) प्रलीन: (.मृतः ) मूढ़योनिषु ( पश्वादिषु ) जायते ॥ १५ ॥ अनुवाद। शरीरमें रजोगुण की वृद्धि समयमै मरनेसे कर्मासक्त मनुष्य-लोकमें जन्म लेते हैं। और तमोगुण को वृद्धि कालमें मृत शरीरी पशु आदि मूढ़ योनिमें जन्म लेते हैं ॥ १५॥
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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