SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्दशोऽध्यायः श्रीभगवानुवाच । परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् । यजज्ञात्वा मुनयः सर्वे परी सिद्धिमितोगताः॥१॥ अन्वयः। श्रीभगवान् उवाच। ज्ञानानां ( मध्ये ) उत्तभं परं ( परमात्मनिष्ठ) ज्ञानं भूयः प्रवक्ष्यामि, यत् ज्ञात्वा सर्वे मुनयः इतः ( देहवम्धनात् परां सिद्धि गताः (मोक्ष प्राप्ताः)॥१॥ अनुवाद । श्रीभगवान कहते हैं। ज्ञान समूह के भीतर उत्तम जो परम ज्ञान, पुनराय मैं कहूंगा, जिसे जानकर सब मुनिगण वहाँसे ( देह बन्धनसे ) मोक्षधाममें गमन करते हैं ॥१॥ व्याख्या। पूर्वाध्यायमें उक्त हुआ है कि उत्पद्यमान पदार्थ समूह क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-संयोगसे उत्पन्न होता है। वही क्षेत्र-क्षेत्रज्ञका संयोग जो आपही श्राप नहीं होता, परन्तु ईश्वरकी इच्छासे ही होता है, उसी विषयको प्रत्यक्ष दिखलानेके लिये श्रीभगवान “परं भूयः प्रवक्ष्यामि" इत्यादि वाक्य द्वारा इस अध्यायको प्रारम्भ किये हैं। पूर्व अध्यायके २२ श्लोकमें कहा हुआ है कि, प्रकृतिस्थत्व और गुणसंग ही संसारकारण है। अब बात यह है कि, कौन गुणमें किस प्रकार संग होता है ? गुण क्या क्या है ?-और कसे कर के आबद्ध करता है ? गुण समूहसे मोक्ष किस प्रकारसे होता है ? तथा मुक्त पुरुषका लक्षण किस प्रकारका है ? -इन सब विषयका ज्ञान ही उत्तम अर्थात् परमज्ञान है; इस अध्यायमें वही कहा हुआ है। उसी परमज्ञानको जान करके ही मुनिगण (जिस साधकोंको मनोवृत्ति सम्यक् प्रकारसे लीन हुई हैं वे सब ) परासिद्धि अर्थात् जिसके ऊपर ( बढ़के ) साधन और साधन
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy