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________________ प्रथम अध्याय स्थान पाण्डव पक्ष कौरव पक्ष मूलाधार... क्षिति (सहदेव) शम काम ( दुर्योधन) स्वाधिष्ठान... अप ( नकुल) दम मणिपुर... तेज (अर्जुन) ..तितिक्षा क्रोध ( दुःशासन ) और मृत्युभय ( जयद्रथ ) परस्पर सापेक्ष होनेसे यह लोग इकट्ठे रहते हैं। लोभ ( कर्ण = कर्तव्य कर्म और | विकर्ण - अकर्तव्य कर्म) मोह ( शकुनि इन्होंने मोह | उत्पन्न कराके कौरवोंकी य त । क्रियामें प्रवृत्त किया था।) मद ( मद्रराज शल्य ) अश्वस्थामा कर्मफल मरुत (भीम) उपरति अनाहत... विशुद्ध... ब्योम (युधिष्ठिर) श्रद्धा आज्ञा... कूठस्थ चैतन्य (श्री | मत्सरता (भीष्म, द्रोण और कृप) कृष्ण ) समाधान शमादि बन्धु और कामादि रिपु जीवमात्रों के कर्मफल का प्रकाश है इसलिये अश्वत्थामा इन मूलाधारादि छः स्थानों में ही है। तस्य संजनयन् हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः। सिंहनादं विनद्योच्चः शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥ १२ ॥ अन्वयः। कुरुवृद्धः प्रतापवान् पितामहः (भीष्मः ) तस्य ( दुर्योधनस्य ) हर्षे संजनयन् उच्चैः (महान्तं) सिंहनादं विनद्य (कृत्वा) शंखं दध्मौ (पादितवान् ) ॥१२ । अनुवाद। तब प्रतापवान् कुरुवृद्ध पितामह भीष्मने उन्हें ( दुर्योधनको ) आनन्दोत्पादन करा उच्चैःस्वरमें सिंहनादकर शंखध्वनि की॥ १२॥ व्याख्या। पड़ता जब बुरा पड़ता है, तब रसिकता भी गाली हो करके खड़ी होती है। दुर्योधनने पाण्डवोंके ऊपर गुरुका क्रोध उद्दी
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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