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________________ विज्ञापन काशीधाम -प्रणवाश्रमके कईएक शिष्य एक रोज गीताकी आलोचना करनेमें प्रवृत्त होकर प्रणवाश्रमके अधीश्वर महात्मा योगीप्रवर परम पूजनीय श्री ६ गुरुदेव परमहंस श्रीमत् प्रणवानन्द स्वामीजीके चरणप्रान्तमें उपस्थित हुये थे; और भक्तिप्रणत मस्तक होकर साग्रह चित्तसे पूछे थे, कि 'हे गुरुदेव ! गीताका प्रकृत तस्व क्या है, उसे कृपा करके हम लोगोंको समझा दीजिये। उन लोगोंके इस उत्तम प्रश्नसे हर्षित होकर वह ध्याननिमीलित नेत्रमें क्रमशः जो जो उषदेश किये थे, उससे वह लोग जो कुछ प्रत्यक्ष किये, सुने, अनुभव किये और समझे थे उसीको बङ्गभाषामें गोताकी व्याख्या लिखकर श्रीयुक्त ज्ञानेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय वि.ए., वि.एल. ने प्रकाशित किया था। परन्तु वह व्याख्या बजभाषामें छपनेसे जो लोग बाला नहीं जानते वह लोग उसे नहीं समझते हैं। स्वामीजी महाराज के बङ्गाली शिष्योंको छोड़ हिन्दुस्तानी शिष्य भी बहुत हैं। उनके विशेष आग्रह और अनुरोधसे हिन्दुस्तानी जनसाधारणके उपकारके लिये उसी बंगला व्याख्याको हिन्दी भाषामें अनुवाद कराके १९१७ सालमें प्रकाशित किया था। ___यह ग्रन्थ धर्मपिपासु महाशय लोगोंके उपकारार्थ प्रकाशित हुआ। इससे उनके कुछ भी उपकार साधित होनेसे मेरा उद्देश्य सफल होगा। परिशेषमें, धर्मप्राण भावग्राही साधु व साधकवृन्द और पाठक महाशयोंसे हमारा सानुनय निवेदन यह है, कि वे लोग इस गीताके प्रथम संस्करणके दोषभागको परित्याग करके गुणभागको ग्रहण करें; और जो कुछ दोष देखें उसे अनुग्रह पूर्वक बन्धुभावसे हमको सूचित करके चिरवाधित करें। परवर्ती संस्करणमें इस व्याख्याको निर्दोष करनेकी चेष्टा करेंगे। इति । प्रणवाश्रम -प्रकाशक काशीधाम १६६७ शिवम् ।
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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