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________________ अष्टम अध्याय 356 ब्रह्मवाचक प्रणव मन्त्रको “चैलाजिनकुशोत्तर" प्रासनमें मूलाधारसे चित्तपथमें व्याहरन करेंगे (क्रिया गुरूपदेशगम्य ) / *व्याहरन्”(विशेष रूपसे बाहरण ) अर्थात् उच्चारयन् / उत् = उर्ध्व में चार = चरण करना, अयन= गति ; अर्थात् ऊर्ध्वगतिमें चलाय देवेंगे-ऊंचे दिशामें उठावेंगे। इसीका नाम कुण्डलिनी देवीको उठाना है। किस तरहसे उठावेंगे ? कि, "मामनुस्मरन्”–मेरे अणुको स्मरण करते करते। वह किस प्रकार है ? कि मूलाधारसे उस कुण्डलिनीको ब्रह्मनाड़ीके ठीक मध्यभागसे यथोपदिष्ट क्रियामें धीरे धीरे उठा कर( कामपुर चक्रसे समस्त कामना वा वासनाको समेटकर, स्वाधिष्ठानमें पहुँचकर क्रोधको समेटके, मणिपुरके ऊपर अष्टधा बलयाकार महापन्थके गर्भ होकर लोभको समेटके, अनाहत चक्र भेद करके मोहको समेटकर, विशुद्ध चक्र भेद करके मदको समेटके, आज्ञाचक्र भेद करके मत्सरताको समेटके )-सहस्रारमें परम शिवके ऊपर आहुति देने होगा। इस आहुति देतेमात्र, अ+उ+म, इन तीन वर्णके मिलनेसे जो शब्द होता है, उसी शब्दको व्यजनविहीन.करके उच्चारण करने से जिस प्रकार शब्द होता है, ठीक उसीके सदृश एक ( तैलधारावत् अविच्छिन्न ) ध्वनि उत्पन्न होगा। जब उस ध्वनि की उत्पत्ति होगी, उसके साथही साथ, गन्धज्ञान, रसज्ञान, स्पर्शज्ञान, शब्दज्ञान मिटकर, एक अभूतपूर्व अश्रुतपूर्व अति आवेंगी। उस श्रुतिके ठीक मध्यभागसे एक अदृष्टपूर्व ज्योति देखने में आवेगी ; उस ज्योतिके भीतर भवसागर में चक्कर खानेवाला मन संकोचताको परित्याग करके, विस्तृत विष्णुपदमें व्याप्य-व्यापकता शून्य होकर विलय प्राप्त होगा। इस प्रकार की प्राप्ति होती है। यह जो उपदेश है, श्री श्री सद्गुरुचरणमें मस्तक दिया है जिसने, वही जान लिया है ; यह कथा कहना ही अधिक है // 12 // 3 //
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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