SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम अध्याय ३२१ (११) वह अहंत्व ही पुनः आज्ञाके ऊपर दिशा बुद्धिक्षेत्रमें बुद्धि स्वरूपसे वर्तमान है। जीवमात्रके बुद्धि ( कोई काम काज करना, न करना, सो निश्चय करनेवाली शक्ति ) वहांसे ही आती है; इसलिये भगवान् बुद्धिमानों की बुद्धि है। ___ (१२) तेजस्वियोंका तेज भी भगवान् है ।. जिस शक्ति द्वारा मन में असीम साहस और विश्वास उत्पन्न होता है, जो उत्साह और विश्वास कोई किसीसे भी नहीं हिलता, जिससे इच्छामात्र पूरण होता है, उसीको तेज कहते हैं। यह तेज ही ब्रह्मबल, अतएव भगवत् शक्ति है। सहस्रारमें इनका विकाश; ओजः शक्ति भी इन्हीं को कहते हैं । यह शक्ति अति पुण्य वा सतकर्मका फल है; इसीलिये सबको नहीं होती। जिन सबको होती है, वही सब तेजस्वी है । तेजस्वीके दर्शनमात्र ही लोग मुग्ध होते हैं। भगवान की चित्शक्ति उसी तेजरूपसे तेजस्वियोंकी पाता है ॥ १०॥ बलं बलवतामस्मि कामरागविवर्जितम्। धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।। ११॥ .. अन्वयः। हे भरतर्षभ ! ( अहं ) बलवता कामरागविवजितं ( कामः असन्निकृष्टषु विषयेषु तृष्णा; रागः प्राप्तेषु विषयेषु रजना, ताभ्यां विकजितं ) बलं ( सामर्थ्य सत्त्वं ) अस्मि । तथा भूतेषु धर्माविरुद्धः कामः अस्मि (धर्मेण शास्त्राथेन अविरुद्धः यः प्राणिषु भूतेषु कामः यथा देहधारणमात्राद्यर्थोऽशनपानादि विषयः सः अस्मि ) ॥ ११ ॥ अनुवाद। हे भरतर्षभ ! बलवानोंके काम राग विवजित जो बल, सो मैं हूँ;-और प्राणीमात्र धर्मका अविरोध जो काम, सो भी मैं हूँ ॥ ११ ॥ व्याख्या। (१३) "कामराग-विवर्जित बल मैं हूँ"। अप्राप्त विषय पानेके लिये आकांक्षाकी नाम काम, और प्राप्त विषयके ऊपर आसक्तिका नाम राग है। मनुष्यके जो बल काम और राग शुन्य, --२१
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy