SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ . श्रीमद्भगवद्गीता कर्म कारणं ( साधनं ) उच्यते; योगारूढस्य (पुनः ) तस्य शमः ( सर्वकर्मभ्यः निवृत्तिः) एव कारणं ( साधनं ) उच्यते ॥ ३॥ . अनुवाद। जो मुनि योगारूढ़ होने की इच्छा करते हैं, कर्म ही उनको साधना किन्तु योगमें आरूढ़ होने पश्चात् शमः अर्थात् कर्म त्याग ही उनके साधन है ॥३॥ व्याख्या । जो साधक कर्मफलके वासना त्याग किये हैं, ईश्वरमें* मन संलीन ( आत्मसमर्पण) करते हैं, वही पुरुष मुनि है। जब तक वह योगमें आरूढ़ न होयके अर्थात् आज्ञाचक्रमें कूटस्थमें न उठ जाय के उठने की इच्छा करते हैं, तब तक एकमात्र कमही अर्थात् प्राणायाम द्वारा षट्चक्रमें यथाविधि प्राण-विन्यास करना ही उनका साधना है, दूसरा साधना नहीं है। यही है आरुरुक्षु अवस्था। उस प्राणायाम द्वारा एक चक्रसे दूसरे चक्रमें उठते उठते आज्ञा चक्रमें उठ जाने के पश्चात् , कर्मराज्य अतिक्रम होनेसे, प्राणकर्म आपही श्राप त्याग हो जाता है, तब शम आता है अर्थात् अन्तरिन्द्रिय विक्षेप विहीन होता है। उस प्रकारसे योगारूढ़ होयके विक्षेप विहीन होनेसे ही ठीक 'मनमें मन देना' होता है; तब "तब "हिरण्मये परे कोषे विरजन् ब्रह्म निष्कलं” यह भावना बिना और कोई वृत्ति ही नहीं रहती, तन्मना हुआ जाता है; यही है अष्टाङ्ग योगका सप्तमाङ्ग ध्यानयोग । यह ध्यान योगही सहस्रार-क्रिया है। इसकी परिपाक अवस्थाही ज्ञानयोग है। [क्रिया द्वारा किस प्रकार अवस्था प्राप्त होनेसे योगाढ़ होता है, उसे पर श्लोकमें कहेंगे] ॥३॥ यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कमस्वनुषज्जते । सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥४॥ अन्वय : यदा हि ना ( नरः) इन्द्रियार्थेषु ( शव्दादिविषयेषु ) कर्मसु च न अनुषज्जते ( आसक्किं न करोति ), तदा ( सः नरः ) सर्वसंकल्पसंन्यासी, योगारूढः उच्यते ॥ ४॥ * योगी क्षुद्र ब्रह्माण्ड की ईश्वरमें लय अभ्यास करेंगे ॥३॥
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy