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________________ चतुर्थ अध्याय - २३१ स्वस्वरूप और सामर्थ्य सम्बन्धमें संशय हुआ था; परन्तु अब तो सब समझ लिये, और क्यों ? संशयको त्याग कर दो। इस संशयको त्याग करना तुम्हारा अपने हाथमें हैं; अपना संशय अपने आप समझके अपने आप त्याग न करनेसे, दूसरा कोई त्याग करा नहीं सकता; यहां पर ही पुरुषकार है, यहां पर ही कृतित्व है। गुरु केवल स्थानको प्रत्यक्ष करा देते हैं, इसके बिना और कुछ नहीं, उसको भेद करना तुम्हारा अपनी शक्तिका काम है। लो अब उठ करके ऊपर योगस्थानमें बैठो ; बैठ करके यथाविधि योगका अनुष्ठान करो॥४२॥ इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्र .. श्रीकृष्णार्जुन संघादे ज्ञानयोगो नाम चतुर्थोऽध्यायः -:.:
SR No.032600
Book TitlePranav Gita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size29 MB
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