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________________ रघुवंशमहाकाव्य ने सीता को आज्ञा दी--वत्से ! अपने पति के सामने अपने आचरण के संबंध में लोगों का सन्देह दूर करो। तब सीता ने पवित्र जल का आचमन कर कहा "हे विश्व का भरण करनेवाली पृथ्वी! यदि मन,वचन और कर्म से मैंने अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य से सम्पर्क न किया हो तो मुझे अपनी गोद में ले लो।" सीता के इतना कहते ही पृथ्वी फटी, उससे एक तेजःपुञ्ज निकला जिसमें शेषनाग के फणों पर टिके सिंहासन पर समुद्र-मेखला पृथ्वी प्रकट हुई और राम के देखते-देखते उसने सीता को अपनी गोद में लिया और पाताल में प्रविष्ट हो गई। राम को पृथ्वी पर बड़ा क्रोध आया। वे उसे दण्ड देने के लिए धनुष उठाने लगे पर ऋषि ने उन्हें शान्त कर दिया। राम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया। ऋषियों को दक्षिणा से और राजाओं को उपहारों से सन्तुष्ट कर विदा किया। सीता पर उनका जो प्रेम था उसे उसके पुत्रों, कुश-लव पर उंडेल दिया। युधाजित (भरत के मामा) के सन्देश पर राम ने सिन्धु देश का राज्य भरत को सौंप दिया। भरत ने वहाँ के गन्धों को जीतकर उनके अस्त्र-शस्त्र रखवा लिए और उन्हें वीणा बजाकर गानेवाला बना दिया। अपने पुत्र तक्ष और पुष्कल को तक्षशिला एवं पुष्कलावती में अभिषिक्त कर भरत राम के पास लौट आये। राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने भी अपने पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु को कारापथ देश का स्वामी बना दिया। इसी बीच राम की माताओं का देहान्त हो गया और उन्होंने उनका क्रियाकर्म किया। ____एक दिन मुनिवेशधारी यमराज ने राम से एकान्त में बात करनी चाही और शर्त यह रखी कि हम दोनों के बात करते समय जो भीतर आयेगा उसे आप सदा के लिए छोड़ देंगे। राम ने शर्त स्वीकार की और लक्ष्मण को द्वार पर नियुक्त कर दिया कि वे किसी को भीतर न आने दें। भीतर यमराज ने अपना वास्तविक रूप प्रकटकर राम को ब्रह्मा का सन्देश सुनाया कि आपने पृथ्वी का भार हलका कर दिया, अब आप स्वर्ग को लौट जाय । इसी समय द्वार पर दुर्वासा ऋषि आये और उन्होंने राम के दर्शन करने चाहे। सब कुछ जानते हुए भी लक्ष्मण दुर्वासा के क्रोधी स्वभाव के कारण डर गये और दोनों के बात करते समय भीतर चले गये। शर्त के अनुसार राम के लिए लक्ष्मण का परित्याग आवश्यक हो गया। भाई के इस संकट को देख लक्ष्मण ने स्वयं सरयू तट पर जाकर योगमार्ग द्वारा शरीर त्याग दिया। लक्ष्मण के
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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