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________________ एकादशसर्ग का कथासार दोनों राजकुमारों-सहित आये हुए विश्वामित्र का जनक ने स्वागत किया। मिथिलावासी नर-नारी राम-लक्ष्मण के दिव्य रूप को एकटक देखते रह गए। धनुषयज्ञ की तैयारी पूरी होने पर ऋषि ने राम की धनुष देखने की इच्छा जनक से प्रकट की। विख्यात कुल में उत्पन्न राम के कोमल और दिव्य रूप को देखकर शिवजी के कठोर धनुष तोड़ने सम्बन्धी सीता-विवाह के अपने प्रण पर जनक को अत्यन्त क्षोभ हुआ और वे बोले___ रात-दिन धनुष की डोरी खींचते जिनके हाथों में गढ़े पड़ गए ऐसे बड़ेबड़े पराक्रमी राजा इसे न उठा सके और अपनी भुजाओं को धिक्कारते चले गये। उस कठोर धनुष को छूने की इन कोमल बच्चों को मैं कैसे अनुमति दूं? तब ऋषि ने कहा-वज्र में कितनी शक्ति है यह तो तभी ज्ञात होता है जब उससे पहाड़ टूट जाता है। ऐसे ही राम की शक्ति का भी धनुष को छूते ही आपको पता चल जायेगा । जुगन-जैसी छोटी चिनगारी में भी भीषण दाह करने की शक्ति हो सकती है-यह सोचकर सत्यवक्ता ऋषि के वचन पर विश्वास करके जनक ने अपने योद्धाओं को धनुष लाने का आदेश दिया। सोये हुए अजगर-जैसे उस भीषण धनुष को, जिसपर बाण चढ़ाकर भगवान् शंकर ने मृगरूपी यज्ञ का पीछा किया था, दशरथनन्दन राम ने देखते ही उठा लिया और उसपर ऐसे प्रत्यञ्चा चढ़ा दी जैसे कामदेव फूलों के धनुष को चढ़ा रहा हो। उसे खींचते ही भीषण ध्वनि करता हुआ धनुष टूट गया। उसके टूटने की ध्वनि इतनी तीन थी कि दूर कहीं तपस्या करते हुए क्रोधी मुनि परशुराम के कानों तक जा पहुंची, मानो यह समाचार देना चाहती हो कि क्षत्रियजाति फिर जी उठी है। __शंकर जी के धनुष को तोड़ने से राम के पराक्रम पर प्रसन्न हुए जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को अग्नि-जैसे पवित्र ऋषि को साक्षी करके राम को अर्पण करने की इच्छा की और राजा दशरथ के पास अपने कुल-पुरोहित को भेजा कि वे सीता को अपनी पुत्रवधू-रूप में स्वीकार करें। वे राम के लिए उपयुक्त वधू की खोज में ही थे। इस समाचार से जैसे उन्हें अभीष्ट फल मिल गया, क्योंकि सज्जनों के संकल्प कल्पवृक्ष से प्राप्त फलों की तरह शीघ्र ही पूर्ण होते हैं। राजा दशरथ पुरोहित एवं चतुरंगिणी सेना के साथ मिथिला को चल पड़े। सेना के संमद से उठी धूल से आकाश भर गया। मिथिला पहुंचने पर इन्द्र और वरुण-जैसे दोनों राजा (दशरथ और जनक) परस्पर मिले और विवाह की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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