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________________ तथा वसन्तोत्सव का वर्णन प्रायः २३ श्लोकों में बहुत मार्मिक, मनोरम ढंग से किया है। वसन्तोत्सव के उपरान्त राजा मृगया (शिकार ) खेलने के लिए सदल बल जाते हैं । २६ पद्यों में शिकार खेलने का वर्णन कवि ने स्वभाविक रूप से किया है । इस अवसर पर श्रवणकुमार अपने अन्धे माता पिता के लिये जल लेने तमसा नदी के तीर पर आता है। घड़ा भरने के शब्द को सुनकर हाथी की कल्पना कर भ्रमवश राजा शब्दवेधी बाण चला देते हैं, वह बारण श्रवणकुमार को लग जाता है । "हा पिताजी" यह श्रवणकुमार का रोना सुनकर राजा उसके पास जाकर ब्रह्महत्या की आशंका से उसका कुल पूछते हैं । श्रवणकुमारके वैश्यसे शूद्रा में उत्पन्न अपने को करण जाति का बताने पर राजा भी बहुत दुःखी होते हैं । श्रवणकुमार के कहने पर राजा, उसे उसके अन्धे माता पिता के पास ले जाकर अज्ञानवश अपना अपराध स्वीकार करते हैं। अन्धमुनि के कहने पर राजा चिता तैयार करते हैं तथा श्रवणकुमार के हृदय से वाण निकालते ही वह मर जाता है, तब अन्धे मुनि राजा को यह शाप देकर कि "आप भी मेरी तरह वृद्धावस्था में पुत्रशोक से मरोगे"। पुत्र के साथ माता पिता भी मर जाते हैं । पुत्रहीन होने के कारण राजा इस शाप को भी अनुग्रह मानकर दुःखित हृदय से घर लौट जाते हैं। दशम सर्ग इस प्रकार इन्द्र के समान तेजस्वी राजा दशरथ को शासन करते हुए मुनि के शाप से लेकर दस हजार वर्ष बीत गये, किन्तु पुत्रोत्पत्ति नहीं हुई। तब ऋष्यशृंगादि ऋत्विजो ने पुत्रेष्टि नामक यज्ञ करना प्रारभ किया और उधर रावण से पीड़ित होकर देवगण क्षीरसागर में विष्णु भगवान् की शरण में गये, और उन्हे विष्णु भगवान के दर्शन हुए। यहाँ पर महाकवि ने ७ से १४ श्लोकों तक विष्णु का वर्णन किया है । तब देवतामों ने प्रणाम करके विष्णु भगवान् की स्तुति ( १६ ले ३३ वें श्लोक तक ) की है, जो कि पाण्डित्यपूर्ण गम्भीर वेदवेदान्त का सार होते हुए भी कवि के चमत्कार से बड़ी सरल है ।
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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