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________________ ( २ ) ने इसके विपरीत इन सबको कुलक्षण समझा। महाकवि का यही इन पद्यों में चातुर्य है। ___ तदनन्तर महाकवि ने स्वयंवर में बैठे राजाओं का वर्णन करना आरम्म किया वह नैसर्गिक होता हुआ बड़ा ही रोचक एवं सुन्दरतम है। सर्वप्रथम मगधदेश के राजा परंतप का वर्णन है। भूमण्डल पर अनेक राजाओं के रहते हए भी पृथिवी इन्हीं राजा से राजन्वती है और निरन्तर यज्ञ कर रहे इन्होंने देवराज इन्द्र को अपने यहाँ बुलाकर इन्द्राणी को चिर वियोगिनी बना दिया। यदि इनको वरना चाहो तो अपने अपने महलों में बैठी पुष्पपुर की महिलाओं के नेत्रों को आनन्दित करो। परन्तप इन्दुमती को भाया नहीं। उसने सुनन्दा को आगे बढ़ने का इशारा किया। सुनन्दा अंगदेश के राजा को दिखाकर कहती है ये भूलोक में भी स्वर्ग का सुख भोगते हैं। अतीव सुन्दर हैं। तथा इनके पास सरस्वती और लक्ष्मी एक साथ रहती हैं । अतः कान्ति तथा सुन्दर वाणी वाली तुम ही इनकी तीसरी हो जाओ। किन्तु इन्दुमती रुचिकर न होने से इसे छोड़कर आगे बैठे उजयिनी के राजा के सामने जाती है । पतली गोलमटोल कमर वाला यह राजा महाप्रतापी है। यह महाकाल के समीप रहता है अतः अन्धेरे पक्ष में भी चान्दनी रातों का सदा उपयोग करता है । यदि तुम सिप्रा नदी के वायु से कपाई गई बाग बगीचों की परम्पराओं में विहार करना चाहो तो इस तरुण राजा से विवाह कर लो। इसके पश्चात् सुनन्दा जल से व्याप्त अनूप देश के राजा के समीप ले जाकर कहने लगी, यह राजा बड़ा गुणी तथा उस कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के वंश में उत्पन्न हुआ है। जो कि किसी भी मनुष्य के अपराध करने का मन में विचार करने पर भी उस मनुष्य के सामने धनुष बाण लेकर खड़ा हो जाता था। इस प्रकार उसने मनुष्यों के मन से भी अपराध का विचार हटा दिया था, और प्रतापी रावण को भी अपने कारागार में चिरकाल तक रखा था। उसी के वंश में यह प्रतीप नाम का राजा उत्पन्न है। इस राजा की माहिष्मती राजधानी की करधनीभूत नर्मदा नदी को महल में बैठकर देखने की यदि तुम्हारी अभिलाषा है तो इसकी अंक लक्ष्मी हो जाओ।
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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