SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुक्रमणिका सर्गे श्लोकः। सर्गे श्लोकः सममापनसावास्ता १० ५९ | स ललितकुसुमप्रवाल सममेव समाक्रान्तं ४ ४ | स विभुर्वियुधांशेषु १५ १०२ समानेऽपि हि सौभ्रात्रे १० ८१ स विद्धमात्रः किल ना ५ ५१ समाप्तविद्येन मया २. स विवेश पुरी तया स मारुतिसमानीतमही १२ ७८ | स विश्वजितमाजहे समुद्रपल्योर्जलसनि १३ ५८ स विसृष्टस्तथेत्युक्त्वा १२ म मुहूर्त क्षमखेति १५ स वृत्तचूलश्चलकाक म मृण्मये वीतहिर | स वेलावप्रवलया म मोलरक्षोहरिभिः स | स शापो न त्वया राज १ स ययौ प्रथमं प्राची स शुश्रुवान्मातरि भार्ग १४ संरम्भं मैथिलीहासः १५ ३६ सशोणितेस्तेन शिलीमु सरलासकमाता ससअरश्वक्षुण्णानां ४ ४७ सरसीष्वरविन्दानां स संनिपात्यावरजान्ह १४ ३६ स राजककुदव्यप्रपाणि १७ २७ स सत्त्वमादाय नदीमु १३ १० स राजलोकः कृतपर्व | स सीतालक्ष्मणसखः स १२ स राज्यं गुरुणा दक्तं स सेतुं बन्धयामास स रावणहतो ताभ्यां स सेनां महती कर्षन्पू ४ मुरितः कुर्वती गाधाः | स सैन्यपरिभोगेण सरित्समुद्रान्सरसीय १४ | ससैन्यश्चान्वगादाम १२ १४ संरुद्धचेष्टस्य मृगे २ ४३ स खयं चरणरागमा १९ २६ सरोषदष्टाधिकलोहि स स्वयं प्रहतपुष्करः सर्पस्येव शिरोरलं ना १४ ६३ | संहारविक्षेपलघु सर्वशस्त्वमविज्ञात १० २० | स हत्वा लवणं वीरस्त १५ २६ सर्वत्र नो वार्तमवेहि ५ १३ | स हत्वा वालिन वीरस्त १२ ५८ सर्वातिरिक्तसारेण | स हि प्रथमजे तस्मिन्न १२ १६ सर्वासु मातृष्वपि वत्स १४ २२ | स हि सर्वस्य लोकस्य ४ ८ सलाविरदप्र ७ ५९ | सा किलाश्वासिता चण्डी १२ ५ मलक्ष्मणं लक्ष्मणपूर्व १४ ४४ सा केतुमालोपवना १६ २६ .,५२ ८ . ३२ ८ . २ २ १४ ..
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy