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________________ रघुवंशे भयम् अत्यजत् = त्यक्तवान् । अपरः= कुशः शान्ताः =शमिताः व्यालाः= सर्पाः यस्यां सा तां शान्तव्याला = सर्पभीतिशून्यामित्यर्थः । “शान्तः शमिते" इत्यमरः । अवनि = पृथिवीम् अत एव पौराणां = नागरिकाणां कान्तः = प्रियः इति पौरकान्तः सन् शशास = शासितवान् । पालयामासेत्यर्थः। ___ समासः-त्रयाणां भुवनानां समाहारः त्रिभवनं, त्रिभुवनस्य गुरुः तस्य त्रिभुवनगुरोः । पितुः वधः पितृवधस्तेन रिपुस्तस्य पितृवधरिपोः। शान्ता: व्यालाः यस्यां सा तां शान्तव्यालाम् । पौराणां कान्तः पौरकान्तः। हिन्दी-इस प्रकार तीनों लोकों के नाथ राम के एवं मैथिली ( सीता जी ) के पुत्र राजा कुश को अपना बन्धु ( समधी ) बनाकर नागराज कुमुद ने, पिता को मार डालने के कारण शत्र गरुड़ से डरना छोड़ दिया। और राजा कुश भी, तक्षक नाग के पाँचवें पुत्र कुमुद को अपना बन्धु बनाकर, इसी लिये जिसमें साँपों का उपद्रव शान्त हो गया है ऐसी पृथिवी पर लोकप्रिय होकर शासन करने लगे। विशेषः-विष्णु के अवतार राम के पुत्र कुश जब कुमुद के संबन्धी हो गए तो विष्णु के वाहन ने साँपों से वैर त्याग दिया, और नागों ने भी बन्धु के नाते कुश की प्रजा से वैर करना छोड़ दिया ॥ ८८॥ इति श्रीशांकरिश्रीधारादत्तशास्त्रिमिअविरचितायां "छात्रोपयोगिनी" व्याख्यायां रघुवंशे महाकाव्ये कुमुदतीपरिणयो नाम षोडशः सर्गः ॥
SR No.032598
Book TitleRaghuvansh Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1987
Total Pages1412
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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