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________________ किया है। जो गुणस्थान का वाचक है। आप पढिये स्वयं परीक्षा दिजिए, स्वयं मूल्यांकन किजीए और आगे बढिये। जिसदिन १४वी क्लास पास हो गये तो आप ग्रेज्युएट या केवली हो जायेंगे। जन्म-मरण के रोग से मुक्त हो जायेंगे। अरे! आप गृहस्थ जीवन में रहकर आत्मकल्याण का मार्ग संयम द्वारा निर्मित करे। प्रथम से ग्यारह प्रतिभा या पद तक उर्ध्वगमन करे।आगे गृहत्यागी-वैरागी-निग्रंथ बने। कल तक जिस संपत्ति-मान-आदि के पीछे आप दौडते थे आज वे सब आपके चरण चूमेंगे। आप राजा नही महाराजा बन जायेंगे। आपके पास धन नहीं होगा पर संयमकी संपदा होगी। मोटरगाडी नहीं होगी पर मुक्ति के पथ पर चलने की शक्ति होगी। ___ ऊपर जो भी चर्चा की उसका दस्तावेज क्या? मित्रो! उसका दस्तावेज है हमारे चार अनुयोग के शास्त्र। हमें स्वयं व परिवार को प्रथमानुयोग का कथानुयोग की कथायें पढना-पढाना चाहिए। इन्ही कथाओं के माध्यम से उत्तम गुणों को प्रस्तुत किया जाता है। सदाचार सत्कार्य में श्रद्धा दृढ होती है। ये मात्र कथायें नही होती, अपितु उनके माध्यम से जीने की कला, व्यवहार मन-वचन की शुद्धि आदि का पयपान कराया जाता है। जब उम्र बढती है। कथाओं के माध्यम से श्रद्धा दृढ बनती है तब हम चारित्र की ओर मुडते है। हमारा चरणानुयोग या आचारांग श्रावक और साधु को जीने की कला-नियम सिखाते है। श्रावक व साधु के आवश्याकादि नियमों में रहने की शिक्षा देते है। खान-पान, रहन-सहन सिखाते है। यदि प्रातःकालिन देव-दर्शन-पूजा की ओर उन्मुख करते है तो संध्या का प्रतिक्रमण पूरे दिन के कार्यो का लेखाजोखा लेने को प्रेरित करता है। पुनःपुनः शुद्धि का ध्यान, मूलों के प्रति प्रायश्चित जीवन सुधारने और सँवराने की कला सिखाते है। यही चारित्र उत्तरोत्तर मोक्ष या अनंतसुख की ओर ले जाता है। इसी क्रम में हम करणानुयोग के द्वारा श्रृष्टि की रचना आदि का ज्ञान, ज्योतिष वैद्यक आदि अनेक ज्ञान के साथ गणित आदि विद्याओं का जानधारा 8-9 34 साहित्य ज्ञानसत्रा6-3)
SR No.032594
Book TitleGyandhara 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2011
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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