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________________ (अ) वे कर्म जिन्हें संकल्पपूर्वक नहीं किया गया है, अर्थात् जो सचिन्त्य नहीं हैं, उपचित नहीं होते हैं। (ब) वे कर्म जिन्हें सचिन्त्य होते हुए भी सहसाकृत हैं, उपचित नहीं होते हैं। इन्हें हम आकस्मिक कर्म कह सकते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में इन्हें विचारप्रेरित कर्म (आइडियो मीटर एक्टीटी) कहा जा सकता है। (स) भ्रान्तिवश किया गया कर्म भी उपचित नहीं होता। । (द) कर्म के करने के पश्चात् यदि अनुताप या ग्लनि हो, तो उस पाप का प्रकाशन करके पाप विरति का व्रत लेने से वह कृतकर्म उपचित नहीं होता। (ई) शुभ का अभ्यास करने से तथा आश्रय बल से (बुद्धादि के शरणागत हो जाने से) भी पापकर्म उपचित नहीं होता। ४. वे कर्म जो कृत भी नहीं है और उपचित भी नहीं हैंस्वप्नावस्था में किये गये कर्म इसी प्रकार के होते हैं। . इस प्रकार प्रथम दो वर्गों के कर्म प्राणी को बन्धन में डालते हैं और अन्तिम दो प्रकार के कर्म प्राणी को बन्धन में नहीं डालते। ____ बौद्ध आचारदर्शन में भी राग-द्वेष और मोह से युक्त होने पर ही कर्म को बन्धन कारक माना जाता है और राग द्वेष और मोह से रहित कर्म को बन्धनकारक नहीं माना जाता। बौद्धदर्शन राग-द्वेष और मोह रहित अर्हत् के क्रिया व्यापार को बन्धन कारक नहीं मानता है, ऐसे कर्मों को अकृष्ण-अशुक्ल या अव्यक्त कर्म भी कहा गया है। १०. गीता में कर्म अकर्म का स्वरूप गीता भी इस सम्बन्ध में गहाराई से विचार करती है कि कौन-सा कर्म बन्धनकारक और कौन-सा कर्म बन्धनकारक नहीं है। गीता के अनुसार कर्म तीन प्रकार के है- १. कर्म, २. विकर्म, ३. अकर्म। गीता के अनुसार कर्म और विकर्म बन्धनकारक हैं और अकर्म बन्धनकारक नहीं हैं। [70] जैन, बौद्ध और गीता में कर्म सिद्धान्त
SR No.032591
Book TitleJain Bauddh Aur Gita Me Karm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2016
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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