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________________ को जैन-परम्परा के अर्थ में नहीं लेते हैं। उसमें संवर का अर्थ मन, वाणी एवं शरीर के क्रिया-व्यापार या ऐन्द्रिक प्रवृत्तियों का संयम ही अभिप्रेत है। वैसे जैन-परम्परा में भी संवर को कायिक, वाचिक एवं मानसिक क्रियाओं के निरोध के रूप में माना गया है, क्योंकि संवर के पाँच अंगों में अयोग (अक्रिया) भी एक है। यदि इस परम्परागत अर्थ को मान्य करते हुए भी थोड़ा ऊपर उठकर देखें तो संवर का वास्तविक अर्थ संयम ही होता है। जैनपरम्परा में संवर के रूप में जिस जीवन-प्रणाली का विधान है वह संयमी जीवन की प्रतीक है। स्थानांगसूत्र में संवर के पाँच भेदों का विधान पाँचों इन्द्रियों के संयम के रूप में किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में तो संवर के स्थान पर संयम को ही आसव-निरोध का कारण कहा गया है। वस्तुतः संवर का अर्थ है अनैतिक या पापकारी प्रवृत्तियों से अपने को बचाना और संवर शब्द इस अर्थ में संयम का पर्याय ही सिद्ध होता है। बौद्ध-परम्परा में संवर शब्द का प्रयोग संयम के अर्थ में ही हुआ है। धम्मपद आदि में प्रयुक्त संवर शब्द का अर्थ संयम ही किया गया है। संवर शब्द का यह अर्थ करने में जहाँ एक ओर हम तुलनात्मक विवेचन को सुलभ बना सकेंगे वहीं दूसरी ओर जैन-परम्परा के मूल आशय से भी दूर नहीं जायेंगे, लेकिन संवर का यह निषेधक अर्थ ही सब कुछ नहीं है, वरन् उसका एक विधायक पक्ष भी है। शुभ अध्यवसाय भी संवर के अर्थ में स्वीकार किये गये हैं, क्योंकि अशुभ की निवृत्ति के लिये शुभ का अंगीकार प्राथमिक स्थिति में आवश्यक है। वृत्ति-शून्यता के अभ्यासी के लिए भी प्रथम शुभ-वृत्तियों को अंगीकार करना होता है, क्योंकि चित्त का शुभवृत्ति से परिपूर्ण होने पर अशुभ के लिए कोई स्थान नहीं रहता। अशुभ को हटाने के लिए शुभ आवश्यक है। संवर का अर्थ शुभ-वृत्तियों का अभ्यास भी है। यद्यपि वहाँ शुभ का मात्र वही अर्थ नहीं है जिसे हम पुण्यासव या पुण्यबंध के रूप में जानते हैं। २. जैन परम्परा में संवर का वर्गीकरण (अ) जैन-दर्शन में संवर के दो भेद हैं- १. द्रव्य संवर और २. भाव संवर। द्रव्यसंग्रह में कहा गया है कि कर्मास्रव को रोकने में सक्षम [122] जैन, बौद्ध और गीता में कर्म सिद्धान्त
SR No.032591
Book TitleJain Bauddh Aur Gita Me Karm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2016
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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