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________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [ ८४३ के जरिये नहीं । देवशक्ति द्वारा भी हो सकता है वह बात नहीं, पर केवल आत्मशक्ति के जरिये हो ! आत्म-लब्धि द्वारा जो अष्टापद की वन्दना करे। शरीर का काम शरीर करे पर आत्मा का काम आत्मा करता है तो उसके साथ शरीर भी जाय तो परवाह नहीं । या अकेला आत्मा भी वैक्रिय - लब्धि द्वारा वैक्रिय शरीर धारण करके इधर-उधर जावे मनुष्यक्षेत्र का मानवी तो उनको तद्भव मुक्तिगामी जानना । ऐसा ऐकान्त कथन नहीं है, कथंचित् आसन्न भव्य तो है ही है । यह बात ध्यान में रह गई और मौका पाकर भगवान की आज्ञा ली और आत्मलब्धि द्वारा अष्टापद की यात्रा / वंदन करने के लिये पधारे। गौतमस्वामी का शरीर मोटा-ताज़ा था। यह बात ग्रंथकार ने ऐसी लिखी है टीकाकार ने, मूलग्रन्थमें नहीं टीकाकार ने लिखा है। पीछे कईयोंने ये टीकायें बनाईं। टीकाएं यानि विशेष अर्थ। कईयोंने रचनाएं की हैं लेकिन लगभग विवाद चालू है । फिर सूर्य की किरणों का अवलंबन ले कर के ऊपर पधारे, पर वास्तव में चेतना सूर्य की । यह किरनों को पकड़ना और चढना - तो यह कोई हाथमें थोड़े ही आती है । पर यह चैतन्य किरणों - जिसके अवलंबन से आप ऊपर पधारे। जिनको नाभिमंडल में ध्यान धारणा और समाधि स्थिति सिद्ध हो सकती है, नाभिकमल की किरणों का उपयोग स्थिर करके तो उसके साथ जब वह लब्धि प्रगट हो जाती है, एक साथमें ही उपयोग इधर भी रहे, सारे शरीर का सेंटर है नाभि-मंडल - और आकाश में भी रहे तो यह शरीर आकाश में उड़ना हो सकता है। जिनको उड़ना हो वह उड़े, यह है प्रयोग । उपयोग इधर और उधर आकाशमें। दोनों में एक समानता, उसमें क्षति नहीं हो, धारा अखण्ड रहे जब तक, तब तक उड़ सकता है। जहां जाना जा सकता है। यह मनुष्यों को उड़ने की कला है। ये सारी लब्धियाँ आप में थीं इस लिये आप उधर गये । उस वक्त १५०३ तापस अष्टापद पर्वत के चारों ओर थे। भरत महाराजा ने इस प्रकार रचना कराई थी कि जिससे कोई ऊपर न जा सके मनुष्य किसी भी तरह भी । तो यह चारों ओर से किलेबन्दी के रूप में कठिन करके और नीचे का समतल कर दिया, फिर ऊपर के भाग में जो ऐसा भाग होता है, ऐसा ऐसा करके एल मार्क की तरह से कठिन कर दिया। वह पायरी बन गई। इस तरह आठ पायरी थीं। ऊपर भगवान ऋषभदेव का निर्वाण हुआ है। ऐसे तो हिमालय प्रदेश में वह वस्तु है । बहुत सी ऐसी शिखरमालाएं हैं पर यह कैलाश शिखर कहलाता है। वही है अष्टापद । बर्फ के अन्दर ये चीजें मौजूद हैं और अभी गुप्त गुप्त रहें इसी में मजा है । त्रिबेट (तिब्बत) भूमि अभी चाइना के हाथ है और उसमें जो चीजें हैं ऐसी चीजें हैं जो उनके हाथमें नहीं आवे उसमें ही कुशलता है। तो वहां १५०३ तापसों में से एक ग्रूप ५०१ का पहली पायरी पर चढ सका। इतनी लब्धि उनको प्राप्त हुई थी, और दूसरा ग्रूप दूसरी पायरी पर, तीसरा ग्रूप तीसरी पायरी पर था । पहली पायरी वाले एकान्तर आहार लेते थे और फलादि से पारणा करते थे और एक उपवास और फिर फल ग्रहण । दूसरे दो उपवास और फिर सूखे पत्ते पुष्पादि फल मिल गए उससे पारणा करते थे और तीसरे तीन दिन दिन के बाद अल्पाहार लेते थे । किसका ? सूखी हुइ सेवाल, यह सेवाल भी ऊपर जो पानी के ऊपर तैरता है वह सेवाल सूखा हुआ है- वह भी पौष्टिक है और उसके इंजेक्शन बनते हैं आजकल । तो वह विलारी के पैर जितनी और तीन चुल्लु जल लेते थे एक बार और ऊपर जाने के लिए आराधना करते थे, कैलाश को वन्दना
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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