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________________ [ महामणि चिंतामणि (४) पाश - बंधन तोड़ना- " तीव्र रागद्वेषादि और स्नेह ( मोह) भयंकर बंधन हैं। उन्हें काटकर मैं लघुभूत (हल्का ) होकर विचरण करता हूँ ।" ८२० ] (५) "गौतम ! हृदय के भीतर उत्पन्न एक लता है, उसको विषतुल्य फल लगते हैं, उसे तुमने कैसे उखाड़ा ?” " भन्ते ! भावतृष्णा ही भयंकर लता है, उसके भयंकर (जन्म-मरण चक्र) परिणाम वाले फल लगते हैं। उस जड़ से उखाड़कर मैं निर्भय विचरण करता हूँ।' (६) घोर प्रचण्ड अग्नियाँ - "चारों ओर कषाय ( क्रोध - मान-माया - लोभ) की घोर प्रचण्ड अग्नियाँ प्रदीप्त हैं। उन्हें मैं श्रुत, शील व तपरूप जलधारा से शान्त कर देता हूँ । बुझी हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलातीं ।" (७) साहसिक, भयंकर दुष्ट अश्ध - "मन ही साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व है । उस मनरूपी अश्व को मैंने वश में कर लिया है। अब वह मेरी इच्छानुसार गमन करता है।” (८) कुमार्ग - सन्मार्ग - "जिनेन्द्र भगवान -प्रणीत मार्ग ही सन्मार्ग (सुपथ ) है । वही उत्तम मार्ग है, जो लक्ष्य की ओर ले जाता है।" : (E) महान जल-प्रवाह में डूबते प्राणी - 'जन्म-मरण के वेग से बहते - डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है। धर्म ही प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है । " (१०) "समुद्र में नौका डगमगा रही है ।" “बिना छिद्रवाली नौका नहीं डगमगाती । वह पार उतार देती है। शरीर नौका है, जीव नाविक है, संसार समुद्र है । ' (११) " गौतम ! भयंकर गाढ़ अन्धकार में बहुत से प्राणी रह रहे हैं। उनके लिए कौन प्रकाश करेगा ?" " भन्ते ! सम्पूर्ण जगत में प्रकाश करने वाला सूर्य (तीर्थंकर, अर्हन्त महावीर ) उदित हो चुका है।" (१२) क्षेम, शिव और अनाबाध स्थान - "दुःखी (संसारी) मनुष्य को अनेक दुःख बाधाएँ हैं। लोक के अग्रभाग में एक ऐसा स्थान है, जहाँ जरा, व्याधि, वेदना और मृत्यु नहीं है । परन्तु वहाँ पहुँचना अतिकठिन है । .' अत्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गंमि दुरारूहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ।। २३-८१ ॥ अबाध है, सिद्धि है, मुक्ति उस स्थान को महर्षि प्राप्त करते हैं। वह स्थान निर्वाण है, है, लोकाग्र है। क्षेम, शिव और अनाबाध ( अनंत सुख का धाम वह स्थान ) है । " इस प्रकार सर्व संशयों के दूर होने पर घोर पराक्रमी केशीकुमार श्रमणने महान यशस्वी गौतम गणधर को सिर झुकाकर वंदन किया। केशी श्रमण गौतमस्वामी के साथ जाकर, चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के पंचमहाव्रतधर्म के मार्ग में सोल्लास प्रविष्ट हुए ।
SR No.032491
Book TitleMahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year
Total Pages854
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size42 MB
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